नगर निगम शिमला के मेयर का कार्यकाल ढाई साल से बढ़ाकर अब पांच साल कर दिया गया है. हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इसकी मंजूरी दी गई है. इसके बाद मुख्यमंत्री सुक्खू के मित्र एवं शिमला के मेयर सुरेंद्र चौहान उर्फ गुड्डू अब अपने पद पर बने रहेंगे.

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सुरेंद्र चौहान का ढाई साल का कार्यकाल 15 नवंबर को पूरा होने जा रहा है. अब सरकार ने हॉर्स ट्रेडिंग का तर्क देते हुए मेयर का कार्यकाल पांच साल बढ़ा दिया है. आरक्षण रोस्टर के मुताबिक, अगले ढाई साल के लिए अनुसूचित जाति की किसी महिला पार्षद का मेयर बनना था. मेयर पद की दौड़ में कांग्रेस पार्षद सिमी नंदा सबसे आगे मानी जा रही थी. लेकिन अब इनके मेयर बनने के सपनों पर पानी फिर गया है.

बीजेपी ने किया था ढाई साल का प्रावधान

हिमाचल के सभी नगर निगमों में ढाई-ढाई साल तक मेयर के रोस्टर का प्रावधान भाजपा सरकार ने किया था. अब कांग्रेस सरकार ने इसमें बदलाव कर दिया है. शिमला के मेयर सुरेंद्र चौहान और डिप्टी मेयर उमा कौशल ने 15 मई 2023 को पद एवं गोपनीयता की शपथ ली थी. अब इनका ढाई साल का कार्यकाल 20 दिन बाद पूरा होने वाला था.

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शिमला नगर निगम में मेयर डिप्टी मेयर को मिलाकर कांग्रेस के 25 पार्षद है, जबकि भारतीय जनता पार्टी के 8 और माकपा समर्थित एक पार्षद है. निगम शिमला में कुल 34 वार्ड हैं. नगर निगम में शिमला शहरी, शिमला ग्रामीण और कसुम्पटी विधानसभा क्षेत्र आते हैं. शिमला शहरी विधानसभा से सबसे ज्यादा 18 पार्षद, शिमला ग्रामीण से 4 और कसुम्पटी से 12 पार्षद हैं. वर्तमान में मेयर और डिप्टी मेयर दोनों ही शिमला शहरी से हैं.

नेता प्रतिपक्ष ने इस पर सरकार को घेरा

सरकार के इस फैसले पर जयराम ठाकुर ने कहा कि सरकार द्वारा शिमला के मेयर और डिप्टी मेयर के कार्यकाल को ढाई साल से बढ़ाकर 5 साल करके सरकार मेयर के चुनाव से भाग रही है. मुख्यमंत्री को अपनी नाकामी और जनता का मूड पता है. इसलिए उन्हें इस बात का अंदाजा है कि उनके सभासद ही कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी का समर्थन नहीं करेंगे. 

उन्होंने कहा कि कांग्रेस यह चुनाव हार जाएगी. इसीलिए पहले नगर निगम और नगर निकाय के चुनाव टाले गए. इसके बाद पंचायत के चुनाव टाले गए. अब सरकार मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव टालकर मैदान से भाग रही है. उन्होंने कहा कि सबसे हैरानी की बात यह है कि सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर जारी किए गए अधिकारिक विज्ञाप्ति में इस फैसले का जिक्र ही नहीं है. इससे ही नीयत में खोट झलकती है.

पूरे दिन व्यवस्था परिवर्तन का ढोल पीटने वाली सरकार पंचायत चुनाव से लेकर मेयर चुनाव तक से किनारा कर रही है क्योंकि वह जानती है कि पिछले तीन साल में उसने प्रदेश को 30 साल पीछे ले जाने का काम किया है. उन्होंने कहा कि कल फिर से व्यवस्था परिवर्तन की मित्र मंडली और प्रचार तंत्र इस फैसले को बेशर्मी से जस्टिफाई करते नजर आएंगे.