Himachal Tara Devi Temple: पूरे देश में इन दिनों चैत्र मास के नवरात्रि की धूम है. देश भर के प्रसिद्ध मंदिरों में दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी हुई है. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के मंदिरों में भी मां के भक्तों की भारी भीड़ है. शिमला के तारा देवी और कालीबाड़ी समेत अन्य मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ लगी हुई है. नवरात्रि के दूसरे दूसरी नवरात्रि के मौके पर हम आपको शिमला के प्रसिद्ध तारा मंदिर की कहानी बताने वाले हैं.


शिमला की ऊंची पहाड़ी पर स्वर्ग की देवी मां तारा का वास है. शिमला के शोघी इलाके की ऊंची पहाड़ी पर मां तारा विराजमान हैं. यहां मां तारा के दर्शन करने लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं. मान्यता है कि जो भक्त मां तारा के दरबार में पहुंचता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. अपनी दिव्य सुंदरता और आध्यात्मिक शांति के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर हिमाचल के लोगों के लिए आस्था का भी केंद्र है. 


शिमला से लगभग 18 किलोमीटर दूर 
तारा देवी मंदिर शिमला से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर है. शोघी की पहाड़ी पर बना यह मंदिर समुद्र तल से 1 हजार 851 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. श्रद्धालुओं के लिए मंदिर तक पहुंचे के लिए बेहतरीन सड़क सुविधा है, लेकिन कुछ लोग यहां वादियों की सुंदरता देखने के लिए मंदिर ट्रैकिंग कर के भी पहुंचते हैं. यहां अब सड़कों को चौड़ा करने का काम भी तेजी से चल रह है.


पश्चिम बंगाल से मां तारा को लाया गया हिमाचल  
तारा देवी मंदिर का इतिहास करीब 250 साल पुराना है. कहा जाता है कि एक बार बंगाल के सेन राजवंश के राजा शिमला आए थे. एक दिन घने जंगलों के बीच शिकार खेलने से पैदा हुई थकान के बाद राजा भूपेन्द्र सेन को नींद आ गई. सपने में राजा ने मां तारा के साथ उनके द्वारपाल श्री भैरव और भगवान हनुमान को आम और आर्थिक रूप से अक्षम आबादी के सामने उनका अनावरण करने का अनुरोध करते देखा. सपने से प्रेरित होकर राजा भूपेंद्र सेन ने 50 बीघा जमीन दान कर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया. 


बलवीर सेन ने करवाया था मंदिर का पुनर्निर्माण
मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद मां तारा की मूर्ति को वैष्णव परंपरा के अनुसार स्थापित किया गया था. यह मूर्ति लकड़ी से तैयार की गई थी. कुछ समय बाद राजा भूपेंद्र सेन के वंशज बलवीर सेन को भी सपने में तारा माता के दर्शन हुए. इसके बाद बलवीर सिंह ने मंदिर में अष्टधातु से बनी मां तारा देवी की मूर्ति स्थापित करवाई और मंदिर का पूर्ण रूप से निर्माण करवाया.


मां दुर्गा की नौ बहनों में से एक बहन हैं मां तारा
माना जाता है कि माता तारा, दुर्गा मां की नौवीं बहन हैं. तारा, एकजुट और नील सरस्वती माता तारा के तीन स्वरूप हैं. बृहन्नील ग्रंथ में माता तारा के तीन स्वरूपों के बारे में बताया गया है. सबको तारने वाली मां तारा की पूजा हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों में की जाती है. नवरात्रों में माता के दरबार में श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं. नवरात्र में माता की दिव्य मूर्ति के दर्शन पाने के लिए यहां लोग दूर-दूर से आते हैं. 


शिव कुटिया करवाती है कैलाश का आभास
तारा देवी मंदिर से कुछ दूरी पर शिव कुटिया बनी हुई है. घने जंगल में स्थित भगवान शिव का यह छोटा-सा मंदिर है. यह मंदिर भगवान शिव के कैलाश में होने का आभास कराता है. जंगल के अन्य हिस्सों की तुलना में इस मंदिर का तापमान कम होता है. माना जाता है कि कई साल पहले एक संत यहां ध्यान किया करते थे. ठंड में भी वह संत केवल एक लंगोट में ही यहां तपस्या करते थे.


तपस्या कर रहे वे संत दक्षिण भारत से संबंध रखते थे और मर्चेंट नेवी में एक इंजीनियर थे. मंदिर के साथ एक छोटे से कमरे में लकड़ी का लट्ठ लगातार जलता रहता है, जिसे बाबा का धूनी भी कहा जाता है. मान्यता है कि बाबा आज भी यहां ध्यान में बैठे हैं. मंदिर में धुनी की राख को उनके अनुयायियों के लिए प्रसाद माना जाता है.



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