पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने कोविड ड्यूटी पर तैनात एक सरकारी चिकित्सक के खिलाफ केवल इसलिए अनुशासनात्मक कार्रवाई किए जाने पर निराशा जताई, क्योंकि वह आपातकालीन वार्ड में विधायक के आने पर खड़ा नहीं हुआ था. अदालत ने कहा कि यह राज्य का असंवेदनशील और बेहद चिंताजनक रवैया दिखाता है.

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न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति रोहित कपूर की पीठ ने कहा कि समर्पित चिकित्सीय पेशेवरों के साथ होने वाली ऐसी अवांछित घटनाओं  पर रोक लगनी चाहिए. अदालत ने हरियाणा के प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि चिकित्सक को ‘स्नातकोत्तर चिकित्सीय पाठ्यक्रम’ के लिए जरूरी ‘अनापत्ति प्रमाणपत्र’ (एनओसी) तुरंत जारी किया जाए और उसने राज्य पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया.

क्या था पूरा मामला ?

याचिकाकर्ता डॉ. मनोज हरियाणा सरकार के कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर थे और कोविड-19 महामारी के दौरान सरकारी अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में ड्यूटी पर थे.

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चिकित्सक की याचिका के अनुसार, एक दिन अस्पताल का निरीक्षण करने आए एक विधायक इस बात पर नाराज हो गए कि डॉक्टर ने उनके आने पर उठकर उनका अभिवादन नहीं किया. इसके बाद राज्य सरकार ने 2016 के हरियाणा सिविल सर्विसेज (दंड और अपील) नियमों के तहत चिकित्सक को मामूली सजा देने का प्रस्ताव रखा और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया.

डॉ. मनोज ने जून 2024 में अपना जवाब दिया जिसमें उन्होंने कहा कि वह विधायक को पहचान नहीं पाए थे इसलिए वह खड़े नहीं हुए और उन्होंने ऐसा जानबूझकर नहीं किया था. चिकित्सक के अनुसार, आज तक इस मामले में कोई अंतिम आदेश पारित नहीं किया गया है.

कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले पर जताई हैरानी

अदालत ने कहा कि हमें राज्य द्वारा उठाए गए इस कदम पर आश्चर्य और निराशा है कि, कोविड काल के दौरान आपातकालीन ड्यूटी पर तैनात एक चिकित्सक को केवल इसलिए नोटिस जारी किया गया क्योंकि वह विधायक के आने पर खड़े नहीं हुए. किसी डॉक्टर से यह उम्मीद करना कि वह आपातकालीन वार्ड में विधायक के आने पर खड़ा हो और ऐसा न करने पर उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करना बेहद व्यथित करने वाला है.

पीठ ने कहा कि हमारी नजर में इस तरह के आरोप पर चिकित्सक के खिलाफ कार्रवाई करना राज्य की असंवेदनशीलता दिखाता है. उन्होंने कहा कि चिकित्सक को एनओसी न देकर उसे उच्च शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा पूरी तरह मनमाना रवैया है.

राज्य सरकार पर 50 हजार जुर्माना लगाया

अदालत ने कहा कि हमें दुख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि अखबारों में अक्सर समाचार आते हैं कि मरीजों के परिजन या जनप्रतिनिधि चिकित्सकों के साथ बिना किसी ठोस कारण के दुर्व्यवहार करते हैं. अब समय आ गया है कि ऐसी अवांछित घटनाओं पर सख्ती से रोक लगाई जाए और ईमानदार चिकित्सकों को पर्याप्त सम्मान दिया जाए. अदालत ने कहा कि राज्य सरकार चिकित्सक को तुरंत एनओसी जारी करे.

अदालत ने कहा कि याचिका स्वीकार की जाती है और राज्य सरकार को 50,000 रुपये का जुर्माना ‘पीजीआईएमईआर (स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान), चंडीगढ़’ के ‘गरीब मरीज कल्याण कोष’ में जमा करना होगा.