Statement by Swami Pradiptananda: गुजरात के कच्छ के भुज में आयोजित गीता जयंती महोत्सव के दौरान स्वामी प्रदीप्तानंद सरस्वती ने हिंदू समाज को लेकर एक बड़ा और महत्वपूर्ण आह्वान किया है. उन्होंने कहा कि अब से हिंदू परिवारों में शादी के समय दंपत्ति से कम से कम 3 बच्चों का संकल्प लेना चाहिए. अगर कोई दंपत्ति तीन बच्चों के लिए तैयार नहीं है तो उनकी शादी नहीं करवानी चाहिए, ऐसा अनुरोध उन्होंने किया था. स्वामीजी ने चिंता व्यक्त की थी कि एक निश्चित वर्ग की आबादी बढ़ रही है जबकि हिंदुओं की संख्या घट रही है, जिसका यह एकमात्र उपाय है. उन्होंने तीन बच्चों का विभाजन राष्ट्र, समाज और परिवार के लिए कैसे करना है, यह भी समझाया था.

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सनातन धर्म की रक्षा के लिए '3 संतान' का संकल्प

दक्षिणामूर्ति ट्रस्ट संचालित आर्ष अध्ययन केंद्र और अखिल कच्छ समस्त हिंदू परिवार द्वारा भुज में गीता ग्रंथयात्रा के साथ महोत्सव का प्रारंभ हुआ था. इस अवसर पर स्वामी प्रदीप्तानंद सरस्वती ने हिंदू धर्म और समाज की रक्षा के लिए एक नई विचारधारा प्रस्तुत की थी. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि, "जब भी शादी हो, तब नवदंपति को भूदेवों और समाज की साक्षी में संकल्प लेना चाहिए कि वे 3 बच्चों को जन्म देंगे." उन्होंने जोड़ा कि जो इस संकल्प को लेने के लिए तैयार नहीं हैं, उनकी शादी नहीं करवानी चाहिए, क्योंकि घटती आबादी को रोकने का उपाय हमें स्वयं ही खोजना होगा.

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क्यों चाहिए तीन संतान? 

स्वामी प्रदीप्तानंद ने तीन बच्चों के पीछे तर्क देते हुए कहा था कि आज के समय में राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए मानवबल आवश्यक है. पहला संतान: राष्ट्र और देश की रक्षा के लिए समर्पित होना चाहिए. दूसरा संतान: समाज सेवा और धर्म कार्य के लिए होना चाहिए. तीसरा संतान: अपने परिवार का ध्यान रखने और वंशवेल को आगे बढ़ाने के लिए होना चाहिए.

उन्होंने प्रश्न किया कि, "अगर केवल एक ही संतान होगी तो क्या वह युद्ध करने जाएगा? क्या वह सेवा करने जाएगा? किसी भी कार्य के लिए भाई  बहन का होना आवश्यक है. संन्यास लेने के लिए भी पीछे जिम्मेदारी संभालने वाला भाई होना चाहिए."

"हम दो, हमारा एक" वाली मानसिकता पर प्रहार

स्वामीजी ने बदलती सामाजिक मानसिकता पर कटाक्ष किया था. उन्होंने कहा कि पहले के समय में 4-5 संतान होने के बावजूद घर अच्छी तरह से चलते थे. लेकिन धीरे-धीरे "हम दो, हमारे दो" और अब "हम दो, हमारा एक" या "हमारा कोई नहीं" जैसी विचारधारा घुस गई है. युवा शादी करने के लिए तैयार हैं लेकिन संतान के लिए तैयार नहीं हैं, जो पारिवारिक व्यवस्था के लिए खतरा है.

संबंधों के लुप्त होने का भय

हिंदू समाज अल्पसंख्यक की ओर जा रहा है, ऐसी आशंका व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि एक समय था जब किसी पर हमला होता था तो वह कहता था कि "मेरे 5 भाई घर पर बैठे हैं", जो एक सुरक्षा थी. लेकिन अब एक ही संतान होने के कारण भविष्य में मामा, मामी, बुआ और फूफा जैसे रक्त संबंध इतिहास बन जाएंगे और पारिवारिक ढांचा टूट जाएगा. इसलिए समाज के प्रमुखों को इस विचार को आगे बढ़ाना चाहिए.