Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात की राजनीति में आस्था के केंद्र सोमनाथ का नाम आते ही बीजेपी की विजय यात्रा में इसके योगदान की भूमिका ध्यान में आती है. लेकिन एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इस विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी को चुनावी सफलता कम ही मिली है. निर्वाचन आयोग की वेबसाइट से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक,1960 में गुजरात राज्य के गठन के बाद 1962 से 2017 तक हुए सभी 13 विधानसभा चुनावों में सिर्फ दो ही मौके पर बीजेपी सोमनाथ विधानसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार जिता पाई है. जबकि कांग्रेस इस सीट को आठ बार जीत चुकी है. बीजेपी 1995 से गुजरात की सत्ता पर काबिज है.


हर नेता सोमनाथ मंदिर में जरूर करते हैं पूजा
तीन मौके ऐसे आए, जब अन्य दलों के उम्मीदवारों ने यहां से जीत हासिल की. साल 1967 के चुनाव में यहां से स्वतंत्र पार्टी ने, आपातकाल के बाद हुए 1980 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी ने और 1990 के चुनाव में जनता दल के उम्मीदवार ने यहां से जीत दर्ज की. ज्ञात हो कि चुनावी मौसम में कोई भी नेता सोमनाथ मंदिर में पूजा अर्चना का मौका नहीं छोड़ता. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले लगभग सभी चुनावों में सोमनाथ जरूर जाते रहे हैं.


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राहुल गांधी ने की थी यात्रा
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी पिछले विधानसभा चुनाव में सोमनाथ की यात्रा की थी. उस वक्त उनके धर्म को लेकर विवाद हो गया था, जब उन्होंने कथित तौर पर गैर-हिंदुओं के रजिस्टर में हस्ताक्षर किए थे. हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी सोमनाथ में चुनाव प्रचार किया.


कैसा है यहां के लोगों का मिजाज?
सोमनाथ सीट के इस मिजाज के बारे में पूछे जाने पर गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार आर के मिश्रा ने बातचीत में कहा कि सोमनाथ निश्चित तौर पर हिन्दूओं की आस्था का एक बड़ा केंद्र है लेकिन यहां ध्रुवीकरण का कोई इतिहास नहीं रहा है. उन्होंने कहा, ‘‘यहां के अपने स्थानीय समीकरण हैं और कई सारे स्थानीय मुद्दे भी हैं लेकिन जब बारी चुनाव की आती है तो यहां जाति, धर्म पर भारी रही है. इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण गोधरा दंगों के बाद हुए 2002 के विधानसभा हैं. इस चुनाव में बीजेपी ने पूरे गुजरात में अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था लेकिन इसके बावजूद वह सोमनाथ की सीट हार गई थी.’’


 इस सीट को लेकर क्या है संयोग?
गिर-सोमनाथ जिले की इस विधानसभा सीट के साथ एक संयोग यह भी जुड़ा है कि किसी एक पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने वाला उम्मीदवार उसी पार्टी के टिकट पर अगला चुनाव नहीं जीत सका है. सिर्फ दो ही मौके ऐसे आए जब वर्तमान विधायक ने अगले चुनाव में भी जीत दर्ज की लेकिन दोनों ही मौकों पर इन विधायकों ने चुनाव से पहले दल बदल लिए थे. साल 1967 के विधानसभा चुनाव में केसर भगवान दोडिया ने स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की थी. उन्होंने 1972 के अगले चुनाव में लगातार दूसरी बार जीत हासिल की. हालांकि इस चुनाव में वह कांग्रेस के उम्मीदवार थे.


1990 का चुनाव किसने जीता?
इसी प्रकार 1990 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से जनता दल के उम्मीदवार के रूप में जसुभाई बराड ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद 1995 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की. इस बार वह कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए. बराड इसके बाद 1998 का चुनाव हार गए. उन्होंने 2002 में फिर से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में वापसी की लेकिन 2007 का चुनाव वह फिर हार गए.


साल 2012 के चुनाव में उन्होंने चौथी बार जीत हासिल की. साल 2014 में उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया था. इसके बाद वह राज्य सरकार में मंत्री भी रहे. लेकिन 2017 के चुनाव में उन्हें कांग्रेस के युवा नेता विमल भाई चुड़ास्मा के हाथों पराजय झेलनी पड़ी. निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक सोमनाथ विधानसभा में मतदाताओं की कुल संख्या 2,62,942 है. यहां कोली समुदाय, मुस्लिम और अहीर (यादव) मतदाताओं की तादाद भी अच्छी खासी है, जो उम्मीदवारों की जीत और हार में प्रमुख निभाते हैं.


वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 8.5 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति और करीब दो फीसदी अनुसूचित जनजाति आबादी है. अल्पसंख्यक मतदाताओं की आबादी 10 फीसदी से अधिक है. सोमनाथ के चुनावी इतिहास में एक बार एक महिला को भी गुजरात विधानसभा में प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. वह भी मुस्लिम. साल 1975 के विधानसभा चुनाव में शेख अवासा बेगम साहेब मोहम्मद अली ने भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार हमीर सिंह दोडिया को पराजित किया था.


सोमनाथ मंदिर के प्रबंधन का काम देखने के लिए गठित सोमनाथ न्यास के अध्यक्ष प्रधानमंत्री मोदी हैं, जबकि बीजेपी के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी और केंद्रीय मंत्री शाह इसके न्यासी हैं. आडवाणी ने तो 25 सितंबर 1990 को अपनी प्रसिद्ध और बीजेपी को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने वाली रथ यात्रा की शुरुआत के लिए प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर को ही चुना था. यात्रा शुरू करने से पहले सोमनाथ मंदिर में ही आडवाणी ने पूजा की थी और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का संकल्प लिया था.


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