Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली की तिलक नगर विधानसभा सीट कभी भारतीय जनता पार्टी का मजबूत गढ़ मानी जाती थी, लेकिन वर्ष 2013 में आम आदमी पार्टी की राजनीति में एंट्री के बाद चली उनकी झाड़ू से बीजेपी यहां हाशिये पर चली गयी, जबकि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस यहां अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, जानिए क्या है इस सीट का सियासी समीकरण.
बीते चुनावों के बारे में बात करने से पहले साल 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया. तिलक नगर नौ अन्य विधानसभा क्षेत्र मादीपुर, राजौरी गार्डन, हरि नगर, नजफगढ़, जनकपुरी, विकासपुरी, द्वारका, मटियाला और उत्तम नगर के साथ पश्चिमी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है.
आप की झाड़ू से कांग्रेस के साथ बीजेपी का भी हो गया था सफाया
है. वर्ष 1993 से लेकर 2008 तक के चुनावों में यहां बीजेपी का दबदबा रहा और बीजेपी ने 1998 को छोड़ कर तीन चुनावों में जीत दर्ज की. 1993 में जहां बीजेपी को विनोद कुमार शर्मा ने जीत दिलाई तो वहीं 2003 और 2008 में बीजेपी के दिग्गज नेता ओपी बब्बर ने 1998 में कांग्रेस के महाबल मिश्रा के हाथों इस सीट को गंवाने के बाद बीजेपी की वापसी कराई थी. लेकिन उसके बाद यहां आप की ऐसी झाड़ू चली कि कांग्रेस के साथ बीजेपी का भी यहां से सफाया हो गया.
आम आदमी पार्टी के जनरैल सिंह ने 2013 से लगातार 2020 तक हुए तीनों चुनावों में जीत दर्ज की. खास बात यह है कि हर बार उनकी जीत का अंतर बढ़ता गया. जहां 2013 में उनकी जीत का अंतर महज 2088 मत रहा तो वहीं 2015 में उनकी (57,180) और बीजेपी के राजीव बब्बर (37,290) के बीच का यह अंतर 19,890 हो गया जो 2020 में और भी विशाल हो गया और उस चुनाव में जनरैल सिंह (62,436) ने 28 हजार से ज्यादा मतों से बीजेपी के बब्बर (34,407) को हराया था. इस बार फिर वे आप की झाड़ू लेकर चुनावी मैदान में विरोधियों का सफाया करने के लिए तैयार है और उनका सामना इस बार बीजेपी की श्वेता सैनी और कांग्रेस के पीएस बाबा से है.
सिख मतदाताओं की बहुलता का जनरैल सिंह को मिल सकता है फायदा
बात करें तिलक नगर विधानसभा सीट के मतदाताओं की तो सिख बाहुल्य इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 1,59,261 जिनमें 81,127 पुरुष और 78,129 महिलाएं शामिल हैं. जातिवार मतदाताओं के आंकड़ों को देखें तो यहां 36% पंजाबी-सिख, 09% स्वर्ण, 03% मुस्लिम और बाकी ओबीसी एवं दलित मतदाता हैं. यहां से चुनाव लड़ रहे आप के जनरैल सिंह सिख समुदाय से आते हैं, जिसका फायदा एक बार फिर से उन्हें यहां पर मिल सकता है. जबकि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही गैर सिख प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारा है, जिसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ सकता है.
ये हैं यहां के बड़े चुनावी मुद्दे
बात करें यहां के समस्याओं की तो यहां सफाई, सीवर, पीने का पानी, जाम बड़े मुद्दे हैं, जिनका असर इस बार के चुनाव पर पड़ सकता है. अगर आप के प्रति एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर का असर यहां नहीं रहा तो एक बार फिर इस सीट पर जनरैल सिंह झाड़ू चलाने में कामयाब हो सकते हैं. लेकिन क्षेत्र की जनता में आप के प्रति विरोध के साथ वर्तमान विधायक जनरैल सिंह के खिलाफ मिला-जुला माहौल है जिसका असर अगर मतदान पर पड़ता है तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है. जबकि कांग्रेस यहां पर अपना प्रदर्शन बेहतर करने की कोशिश ही करती नजर आ सकती है.
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