Bicentenary of Maharishi Dayanand Saraswati: महर्षि दयानंद सरस्वती की द्विशताब्दी (200वीं) जयंती के पावन अवसर पर स्वामी रामदेव (Swami Ramdev) ने एएनआई से बातचीत में सबसे पहले उन्हें प्रणाम किया. साथ ही स्वामी रामदेव ने महर्षि दयानंद ( Maharishi Dayanand Saraswati) जी के कथन का जिक्र करते हुए कहा कि, 'वह कहा करते थे कि, धरती हमारी मां है और इसके लिए हमें सर्वश्व न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहना चाहिए'. 

उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद के राष्ट्र की आजादी में महान योगदान रहा है. उन्होंने राष्ट्र धर्म व सनातन धर्म को युगधर्म बनाने के संबध के जो कुछ कहा था वो आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत प्रासंगिक है. राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि बताकर उन्होंने देश की आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. महर्षि दयानंद ने देश को जातिवाद, भोग, अंधविश्वास और तमाम तरह के आडंबरों से बाहर निकालने की कोशिश की. 

दयानंद के सपनों को साकार करने की जरूरत

स्वामी रामदेव ने कहा कि दयानंद जी ने सभी को भारत माता की संतान माना था. इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि हम सभी एक हैं और श्रेष्ठ हैं. उन्होंने आचरण की श्रेष्ठता को ही सर्वोच्च धर्म कहा. ऐसे महापुरुष हमारे लिए सदैव प्रणम्य बने रहेंगे. आज उनके सपनों का भारत बनाने के लिए शिक्षा, चिकित्सा, सामाजिक भावना और एक रहने के उनके संदेश को हकीकत में तब्दील करने की जरूरत है. इसलिए सभी को उनके सपनों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए संकल्प लेने की जरूरत है.  

दयानंद महापुरुषों में सबसे बड़ा नाम 

स्वामी रामदेव ने अपने एक ट्वीट में कहा कि महायोगी अरविंद जी के मुताबिक हिमालय की पर्वत श्रंखलाओं को यदि महापुरुषों का नाम दिया जाए तो ऊँची चोटियों में से सबसे ऊँची चोटी पर बैठा हुआ कोई महापुरुष है तो वे महर्षि दयानन्द सरस्वती जी हैं! आज जयंती पर उनके सपनों का भारत बनाने का संकल्प!

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