श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर शनिवार (16 अगस्त) को देश के कई हिस्सों में रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के द्वारका में स्थित इस्कॉन मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी थी. यहां भी सांस्कृतिक कार्यक्रम के जरिए जन्माष्टमी की शोभा बढ़ाई गई. कथक डांसर डॉ. यास्मीन सिंह ने शानदार प्रस्तुति देकर समां बांध दिया. समूह की प्रस्तुति देखकर यहां पर उपस्थित सभी दर्शक झूम उठे.
जानीमानी डांसर डॉ. यास्मीन सिंह ने भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित कथक नृत्य की शानदार प्रस्तुतियां दी. यास्मीन सिंह और उनके ग्रुप में शामिल कलाकारों ने भगवान कृष्ण की लीलाओं का मंचन कर दर्शकों का मन मोह लिया. यास्मीन सिंह के शानदार परफॉर्मेंस से इस्कॉन मंदिर का प्रांगन तालियों की आवाज से गूंज उठा.
जन्माष्टमी पर प्रस्तुति मेरे लिए सौभाग्य की बात- डॉ. यास्मीन सिंह
प्रसिद्ध क्लासिकल डांसर डॉ. यास्मीन सिंह ने कहा, "मैं मध्य प्रदेश से आई हूं और मेरे साथी कलाकार देश के विभिन्न हिस्सों से आए हैं, जिन्होंने मेरे साथ कथक नृत्य में ताल और लय के साथ प्रस्तुति दी. मैं जन्माष्टमी के अवसर पर प्रस्तुति देकर खुद को सौभाग्यशाली महसूस कर रही हूं. ये अवसर बहुत ही कम लोगों को जीवन में प्राप्त होता है. प्रभु के श्रीचरणों में हमलोग नृत्य के फूलों को अर्पित करने आए हैं तो ये हमारी टीम के लिए बहुत ही भाग्य की बात है. हमलोग बहुत ही प्रसन्न हैं.''
दर्शकों ने भावपूर्ण तरीके से कार्यक्रम देखा- डॉ. यास्मीन सिंह
न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में कथक डांसर डॉ. यास्मीन सिंह ने दर्शकों की भी जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा, ''दर्शकगण जो यहां पर उपस्थित थे, उन्होंने बहुत ही भावपूर्ण तरीके से और श्रद्धा के साथ हमारा कार्यक्रम देखा. ऐसा लग रहा था कि वो हमारे कार्यक्रम के साथ पूरी तरह से कनेक्टेड थे. सबसे बड़ी बात है कि दर्शक जो हैं वो कथक को समझ रहे थे. हमारे नृत्य की भाषा समझ रहे थे तो उनका पूरा सहयोग हमें प्राप्त था, इसलिए हम इतना बड़ा कार्यक्रम इतनी सफलतापूर्वक कर पाए.
भगवान श्रीकृष्ण ही हमारे इष्ट देवता- डॉ. यास्मीन सिंह
उन्होंने आगे कहा, ''भगवान श्रीकृष्ण ही हमारे इष्ट देवता हैं क्योंकि ता-ता थैया भगवान श्रीकृष्ण ने ही शुरू किया था. जब उन्होंने कालिया नाग का दमन किया था तो उनके फन पर खड़े होकर उन्होंने ता-ता थैया किया था. ये हमें श्रीकृष्ण से ही प्राप्त हुआ है. हम उन्हें ही अपने नृत्य में देखते हैं और इसके माध्यम से हम उनकी प्रार्थना और अराधना करते हैं.''