1990 Kashmiri Pandits Genocide : 19 जनवरी 1990 को भारत के कश्मीर में हुए नरसंहार (Genocide) को आज  दो दशक  से भी ज्यादा वक्त बीत चुके हैं, मगर कश्मीरी पंडितों के जेहन में अब भी वह दर्द बरकरार है. इन दो दशकों में कई मौकों पर विस्थापित कश्मीरी पंडितों ने सरकार से घर वापसी की गुहार लगाई. इस दौरान कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन उस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका. जिस कारण उस त्रासदि को झेलने के बाद कश्मीर छोड़ कर देश के अलग-अलग हिस्सों में बसे कश्मीरी पंडितों की आंखों में आज भी वो खौफनाक मंजर तैर जाता है. उनकी आंखों में आंसू बन कर वो दर्द उभर आते हैं. इसी कड़ी में एक बार फिर से कई कश्मीरी पंडित गुरुवार (19 जनवरी 2023) को दिल्ली के जंतर मंतर पर पहुंचे. जहां उन्होंने धरना देते हुए सरकार से अपनी कुछ मांगों को पूरा करने के साथ ही घर वापसी की गुहार लगाई.


जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन


कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित और सहायता प्राप्त आतंकवादियों के हाथों अपने समुदाय के दुखद नरसंहार को याद करने के लिए कश्मीरी समिति दिल्ली ने दिल्ली-एनसीआर के अन्य सभी प्रमुख कश्मीरी पंडित संगठनों के साथ गुरुवार को दोपहर 2.30 बजे से शाम 5.00 बजे तक जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया. 


पुनर्वास की समस्या का समाधान करने में विफल है सरकार


इस दौरान चांद और साक्षी ने एबीपी लाइव से बात करते हुए बताया कि 19 जनवरी 1990 को  हमें जातीय सफाई और हमारे समुदाय के बड़े पैमाने पर पलायन की याद दिलाता है, जो इन आतंकवादियों द्वारा तैयार किया गया था और अन्य समर्थन प्रणाली ने उन लोगों द्वारा पूरे राज्य तंत्र को तोड़-मरोड़ कर पेश किया था, जो सत्ता में बने हुए थे. 


लंबे समय से राज्य में मामले


उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडितों की नरसंहार की घटना के बाद केंद्र और राज्य में कई सरकारें आईं और गई, लेकिन सभी सरकारें हमारे नरसंहार के मुद्दे और हमारी मातृभूमि कश्मीर में हमारे पुनर्वास की समस्या का समाधान करने में बुरी तरह विफल रही हैं.


कभी नहीं सुनी गई न्याय की गुहार 


उन्होंने बताया कि जहां तक हमारे समुदाय की समस्याओं का संबंध है, उससे भाजपा सरकार भी इससे अलग नहीं है. पिछली कांग्रेस और एनसी सरकारों की अन्यायपूर्ण और विफल नीतियों को ही इन्होंने भी आगे बढ़ाया है. न्याय के लिए हमारे अनुरोध न्यायपालिका से लेकर विधानमंडल और तत्कालीन सरकार तक सभी स्तरों पर अनसुने और अनसुलझे रहे.  हमारे बच्चों को जानबूझकर एक लोकतांत्रिक देश में प्रधान मंत्री रोजगार पैकेज के तहत बंधुआ और दास नियमों और शर्तों में धकेल दिया जाता है और आतंक के वातावरण में बंधक के रूप में रखा जाता है. इस व्यवस्था ने पूरे समुदाय को धार्मिक रूप से प्रेरित आतंकवादी राजनीति के सामूहिक हमले झेलने के लिए मजबूर कर दिया है. 


कश्मीर में चरमपंथ व धार्मिक आतंकवाद का विरोध करें


प्रदर्शन कर रहे लोगों ने कहा कि हमारी दुर्दशा हमारे देश के शांतिप्रिय लोगों के लिए एक चेतावनी है, जो लोकतंत्र, समावेशी संस्कृति और देश की प्रगति और विकास के सामूहिक लक्ष्य के वास्तविक मूल्यों को बनाए हुए हैं, जो लोकतांत्रिक प्रतिरोध के साथ अत्याचार को हराते हैं और जाति, धर्म और क्षेत्रीय भेद के नाम पर विभाजित होने से इनकार करते हैं. हम एक एक भारत में विश्वास रखते हैं.  भारतीय संविधान और भारतीय लोकाचार में निहित मूल्यों को बनाए रखने के लिए अमानवीय ताकतों द्वारा हमें निशाना बनाया जा रहा है. हमारी अपील सभी सही सोच वाले लोगों से है कि वे हमारी समस्या का समर्थन करें और कश्मीर में चरमपंथ और आतंकवाद का विरोध करें.  


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