Delhi News: डीयू प्रशासन के अन्याय के खिलाफ न्याय पाने की मुहिम में निराशा हाथ लगने के बाद दौलत राम कॉलेज की पूर्व एडहॉक टीचर डॉ. रितु सिंह ने अब आर्ट फैकल्टी के सामने छात्रा मार्ग पर पकोड़ा बेचने का काम शुरू कर दिया है. ऐसा करने का फैसला उन्होंने दौलत राम कॉलेज में उत्पीड़न के​ खिलाफ लंबे समय तक आवाज उठाने के बाद सुनवाई न होने पर लिया. उनका ये फैसला डीयू प्रशासन की नजरों में खटने के बाद अतिक्रमण विरोधी दस्ते ने उनके पकोड़ा स्टॉल को भी ध्वस्त कर दिया, लेकिन वो हिम्मत नहीं हारी और पीएचडी पकोड़ा वाली स्टॉल के नाम से मौरिस नगर में अभी पकौड़ा बेच रही हैं. 


 टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक डॉ. रितु सिंह दौलत राम कॉलेज में साल 2020 में एडहॉक लेक्चरर के रूप में पढ़ाती थी. अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें दौलत राम कॉलेज में दलित होने की वजह से उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा. इतना ही नहीं, नौकरी से भी निकाल दी गईं. इस अन्याय के खिलाफ उन्होंने चुप रहने के बजाय मुखर होकर बोलना शुरू किया. दिल्ली विश्व​विद्यालय की पूर्व एडहॉक टीचर डॉ. रितु सिंह 192 दिनों तक दिल्ली आर्ट फैकल्टी के समने प्रोटेस्ट किया, लेकिन कोई सुनवाई न होने के बाद उन्होंने पकोड़ा बेचने का काम शुरू कर दिया. अब तो वह पीएचडी पकोड़ा वाली के नाम से लोकप्रिय हैं.


 






पीएचडी पकोड़ा वाली उनका निक नैम हो गया है. डीयू के भूख प्यासे छात्रों,  शिक्षकों और राहगीरों का के लिए उनका पकोड़ा स्टॉल नया पिटस्टॉप बन गया है. उनका यह नया रूप डीयू के एक लेक्चरर से पीएचडी पकोड़वाली तक की सफर का प्रतीक है. इसे वह खुद अन्याय और भेदभाव के खिलाफ बुलंद आवाज बताती हैं. अन्याय के खिलाफ न्याय पाने तक अपने  इस मुहिम से पीछे नहीं हटूंगी.  


एडहॉक प्रोफेसर पकोड़ा बेचने पर मजबूर


डॉ. रितु सिंह के प्रोटेस्ट का ये तरीका बहुत जल्द डीयू प्रशासन की आंखों में कांटा बन गया, जो उनके पकोड़ा बेचने को अड्डे ध्वस्त होने के रूप में समाने आया. प्रशासन के इस रवैये से परशान और हैरान रितु ने बहुत जल्ल एक पकोड़ा स्टॉल तैयार कर लिया. ऐसा कर वह खुद को तसल्ली तो दे रही हैं, लेकिन डीयू में यह चर्चा आम है कि कैसे एक दलित टीचर उत्पीड़न से परेशान होकर पकोड़ा बेचने के लिए मजबूर है. 


मैन्यू बना आकर्षण का केंद्र


पीएचडी पकोड़ा वाली ने अपने इस काम के लिए स्लोगन भी तैयार किया और उसे स्टॉल पर लगा रखा है. उनके स्टॉल का स्लोगन है, 'आइए बेरोजगारी के पकोड़े खाइए.' रेहड़ी पर लिखा उनका मैन्यू भी लोगों को आकर्षित करता है. उनके मैन्यू में जुमला पकौड़ा (best seller), स्पेशल रिक्रूटमेंट ड्राइव पकौड़ा, एससी/एसटी/ओबीसी बैकलॉग पकौड़ा, एनएफएस पकौड़ा, डिस्प्लेसमेंट पकौड़ा और बेरोजगारी स्पेशल चाय शामिल है. पकौड़े की कीमत है कि ​शिक्षित करें, संगठित करें और प्रदर्शन करें. इसके अलावा उन्होंने अपना वो फोटो भी लगाया है, जब यूनिवर्सिटी ने उन्हें पीएचडी की डिग्री से नवाजा था. 


सेल्फी सेंटर


डीयू नॉर्थ कैंपस छात्रा मार्ग पर लगी डॉ. रितु सिंह की आकर्षक रेहड़ी को देख न सिर्फ उनके समर्थक, बल्कि वहां से निकल रहे राहगीरों का जमावड़ा लगने लगा है. डीयू की पूर्व प्रोफेसर को रेहड़ी लगाकर पकौड़े तलते और बेचते हुए देख लोग भी हैरान और परेशान होते हैं. लोग उनका मोबाइल से विडियो, फोटो, सेल्फी भी  लेते हैं. 


मुकदमा दर्ज


इस बात की जब मौरिस नगर थाने की पुलिस को भनक लगी, मौके पर एसएचओ, एसआई और थाने की पूरी टीम वहां पहुंच गई. पुलिस ने उनको मौके से रेहड़ी हटाने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने नहीं हटाई। इसके बाद पुलिस ने उनके खिलाफ सार्वजनिक स्थान का दुरुपयोग करने और गलत मंशा से रेहड़ी लगाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया है. 


कौन हैं पीएचडी पकोड़ा वाली रितु सिंह 


डॉ. रितु सिंह पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग में एडहॉक प्रोफेसर रह चुकी हैं. वो करीब एक साल तक असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर रहीं. रितु का आरोप है डीयू प्रशासन ने दलित होने की वजह से उन्हें नौकरी से निकाल दिया. डीयू और कॉलेज प्रशासन के खिलाफ न्याय पाने के लिए वह लंबे अरसे तक डीयू में धरना देती रहीं. अब अन्याय के खिलाफ न्याय पाने के लिए डीयू के नाक के नीचे पकोड़ा बेचती हैं. बता दें कि डॉ. रितु सिंह तरनतारन पंजाब की रहने वाली हैं. 


न्याय के लिए जंग  जारी


डीयू भीम आर्मी स्टूडेंट फेडरेशन के अध्यक्ष आशुतोष बुद्ध का कहना है कि अगर वो चाहें तो काउंसलर या टीचिंग जॉब ​कर सकती हैं, लेकन उन्हें अन्याय के खिलाफ न्याय चाहिए, इसलिए वो संघर्षरत हैं. 


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