दिल्ली विश्वविद्यालय ने विश्वविद्यालय भूविज्ञान के प्रोफेसर के एक अध्ययन का हवाला देते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष कहा है कि विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन के पास नियोजित 36-मंजिला आवासीय बड़ी इमारत नहीं बननी चाहिए. इससे दिल्ली विश्वविद्यालय के भवन की संरचनात्मक अखंडता प्रभावित हो सकती है. 


दिल्ली विश्वविद्यालय ने कहा कि एक बेसमेंट के निर्माण और नींव के काम के लिए 13 से 14 मीटर तक खुदाई की आवश्यकता होगी. इससे आस-पास की इमारतों के बेसमेंट में भी खतरा बन सकता है. डीयू ने इस मामले में 13 मार्च को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया है. इसके लिए एनजीटी मंगलवार को मामले की सुनवाई करेगी.


डीयू के पास आवास परियोजना में 1,37,879.64 वर्गमीटर के क्षेत्र में निर्माण होना है जिसमें 38 मंजिलों की एक इमारत और एक बेसमेंट बनना है. जिस साइट पर काम होना है वह साइट दिल्ली को आवंटित 3.05 हेक्टेयर भूमि का हिस्सा है जिसके एक हेक्टेयर भूमि में मेट्रो स्टेशन बना था. बाकी जमीन को मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने एक निजी बिल्डर को बेच दिया था.


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इस बिल्डिंग को लेकर डीयू ने साल 2019 में कहा था कि इस इलाके में ट्रैफिक भी बढ़ सकता है. वहीं पिछले साल जनवरी में एनजीटी ने परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी को खारिज कर दिया था. इसमें बिल्डर को केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय (एमओईएफ) से नई मंजूरी लेने के लिए कहा गया था. फिर साल 2021 में नई मंजूरी मिली थी लेकिन डीयू अभी भी मंजूरी का विरोध कर रहा है.


डीयू का दावा है कि बिल्डर को जिस पैनल ने मंजूरी दी है उसमें वही सदस्य थे जिसने इसे पहली बार मंजूरी दी थी. डीयू के अधिकारी ने कहा है कि हमने अपना सबमिशन कर दिया है और अब एनजीटी अपना फैसला पारित करने से पहले बिल्डर पक्ष को सुनेगी. डीयू ने अपने सबमिशन में कई पर्यावरणीय मुद्दों और यातायात का मुद्दा उठाया है.