Delhi Services Bill News: संसद में दिल्ली सेवा विधेयक सोमवार को पारित हो गया और इसी के साथ दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार और उपराज्यपाल के बीच नए सिरे से टकराव का मंच तैयार हो गया है. राज्यसभा ने 102 के मुकाबले 131 मतों से ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन विधेयक 2023’ को मंजूरी दे दी है. लोकसभा में यह गुरुवार को पारित हो चुका है. गृह मंत्री अमित शाह ने यह विधेयक संसद में पेश किया और कहा कि इस विधेयक का मकसद राष्ट्रीय राजधानी के लोगों के हितों की रक्षा करना है.


यह विधेयक दिल्ली में समूह-ए के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए एक प्राधिकार के गठन के लिहाज से लागू अध्यादेश का स्थान लेगा. बहरहाल, इस मामले पर अब भी तलवार लटकी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में शासन पर संसद की शक्तियों का अध्ययन करने के लिए पिछले महीने एक संविधान पीठ गठित की थी जिसने अभी तक अपना फैसला नहीं दिया है.


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राज्यसभा में यह विधेयक पारित होने के तुरंत बाद, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि यह भारत के लोकतंत्र के लिए 'काला दिन' है और उन्होंने बीजेपी नीत केंद्र सरकार पर पिछले दरवाजे से सत्ता 'हथियाने' की कोशिश करने का आरोप लगाया.


एक ओर केंद्र और उपराज्यपाल और दूसरी ओर दिल्ली में निर्वाचित ‘आप’ सरकार के बीच सत्ता संघर्ष की जड़ 21 मई 2015 को गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना है जिसमें उपराज्यपाल को नौकरशाहों के तबादले और तैनातियों से जुड़े दिल्ली सरकार के ‘‘सेवा’’ मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया था. यह अधिसूचना केजरीवाल के 14 फरवरी 2015 को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के करीब दो महीने बाद जारी की गयी थी जिसे ‘आप’ सरकार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी.


तब से पिछले आठ साल से उपराज्यपाल कार्यालय और ‘आप’ सरकार के बीच शिक्षकों के प्रशिक्षण, निशुल्क योग कक्षाएं देने, डीईआरसी चेयरमैन की नियुक्ति, मुख्यमंत्री और मंत्रियों की विदेश यात्राओं, सरकार द्वारा भर्ती किए गए 400 से अधिक विशेषज्ञों को हटाने और मोहल्ला क्लिनिक के वित्त पोषण समेत कई मुद्दों पर टकराव जारी है. विशेषज्ञों का कहना है कि गृह मंत्रालय की अधिसूचना से पहले दिल्ली के ‘‘सेवा’’ विभाग पर नियंत्रण ‘‘अस्पष्ट’’ था.


दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव पी के त्रिपाठी ने कहा, ‘‘अधिकारियों के तबादलों और तैनाती पर उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच एक तरह की समझ बनी हुई थी. आयुक्त और शीर्ष स्तर के अधिकारियों के तबादले और तैनाती उपराज्यपाल ही करते थे जबकि मुख्यमंत्री अन्य अधिकारियों के मामलों में अपनी राय रखते थे. अगर कोई मतभेद होता था तो उसे दोनों पक्षों के बीच बातचीत के जरिए सुलझा लिया जाता था.’’


दिल्ली सरकार में अधिकारियों के एक वर्ग को लगता है कि नए कानून से प्रदेश में निर्वाचित सरकार और केंद्र के बीच चल रहा झगड़ा खत्म हो जाएगा जिससे संवैधानिक प्राधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में स्पष्टता आएगी. ‘आप’ के एक नेता ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि इस विधेयक से दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच मतभेदों को हल करने में कोई मदद नहीं मिलेगी.