Delhi News: भले ही नेताओं द्वारा समय-समय पर ये दावा किया जाता रहा हो कि वे जमीन से जुड़े हुए जनप्रतिनिधि हैं लेकिन हिंदुस्तान की सियासत में भी आज वीवीआईपी कल्चर पूरी तरह से हावी है. इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. दिल्ली के रहने वाले वीरेंद्र कुमार लगभग 36 से ज्यादा सालों से राजधानी में ऑटो चलाते हैं, 1986 के दशक में उन्होंने अपने ऑटो से कई सांसदों को भारतीय संसद के दरवाजे तक पहुंचाया है.


एक समय था जब सांसद बेहद सादगी से संसद पहुंचते थे


एबीपी न्यूज़ बातचीत के दौरान वीरेंद्र ने कहा कि वह दिल्ली में 1986 से ऑटो चला रहे हैं, राजीव गांधी की सरकार के समय में उन्होंने कई सांसदों को अपने ऑटो में बिठाकर संसद भवन तक पहुंचाया है. वह दौर उन्हें अच्छी तरह से याद है जब नेता उनके ऑटो में फाइलों के साथ बैठा करते थे और बेहद सादगी के साथ संसद पहुंचते थे. 


अब सादगी केवल दिखावा, VVIP कल्चर पूरी तरह से हावी


ऑटो में महिला सुरक्षा को लेकर भी एक अलग संदेश देने वाले वीरेंद्र ने कहा कि अब काफी कुछ बदल गया है, सियासत हो या अन्य क्षेत्र वीवीआईपी कल्चर सब जगह हावी हो गया है. बातों ही बातों में वीरेंद्र ने पुराने दौर को याद करते हुए कहा कि मेरे ऑटो में बैठकर कई सांसद देश के अनेक मुद्दों पर चर्चा करते थे जबकि आज काफी कुछ बदल गया है. उन्होंने कहा कि आज सादगी केवल दिखावा है, ज्यादातर लोग बड़ी-बड़ी गाड़ियों और राजशाही के साथ ही अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं.


वीवीआईपी कल्चर से लोगों को परेशानी


बता दें कि मोदी सरकार में वीआईपी कल्चर को खत्म करने के प्रयास तो किए, नेताओं की गाड़ियों से लाल बत्ती हटवा दी गई, लेकिन आम जन को इससे कोई बहुत बड़ी राहत नहीं मिली. आज भी जब नेताओं का काफिला सड़कों से गुजरता है तो आमजन को यातायात संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वीआईपी रूट के चलते आम जनता को रोक दिया जाता है, कई बार ये स्थिति काफी देर तक बनी रहती है. साल 2016 की बात है, बेंगलूरू में वीवीआई मूवमेंट के कारण एक एंबुलेंस फंसी रही जिसके कारण एक मरीज को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था.


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