Delhi: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग को सहमति से बने संबंध से 18 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी है. कोर्ट के मुताबिक भले ही मामले की रिपोर्ट पुलिस को की गई हो लेकिन उनके द्वारा दर्ज की गई किसी भी रिपोर्ट को एक सीलबंद कवर में रखा जाना चाहिए.


मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने मंगलवार को एक अंतरिम आदेश में कहा कि प्रतिवादी कानून के अनुसार आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन पुलिस द्वारा पंजीकृत किसी भी रिपोर्ट को एक सीलबंद लिफाफे में रखा जाना चाहिए. जोकि रिट याचिका के अंतिम परिणाम के अधीन होगा.


मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट, 1971 के तहत, नाबालिग को अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने में कोई बाधा नहीं है. हालांकि, यौन अपराधों से बच्चों की रोकथाम (POCSO) अधिनियम, 2012 की धारा 19(1) में कहा गया है कि डॉक्टर को नाबालिग की गर्भावस्था को समाप्त करने से पहले स्थानीय पुलिस को सूचित करना होगा.


याचिकाकर्ता मां ने अधिवक्ता अमित मिश्रा के माध्यम से ये मांग की थी कि पुलिस को मामले की सूचना दिए बिना गर्भावस्था को समाप्त किया जाए. क्योंकि इससे सामाजिक कलंक पैदा होगा. उन्होंने पोक्सो की धारा 19(1) को भी चुनौती देते हुए कहा कि यह संविधान का अधिकार नहीं है.


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बच्ची का हित जरूरी


अपने अंतरिम आदेश में अदालत ने कहा कि नाबालिग को अनचाही गर्भावस्था के साथ आगे बढ़ने के ट्रामा से बचाने के लिए ये जरूरी है. नहीं तो ये उसे गंभीर शारीरिक और मानसिक परेशानी देगा. अदालत ने केंद्र के इस तर्क से भी सहमति जताई कि एमटीपी अधिनियम और पोक्सो अधिनियम के बीच सामंजस्य के संबंध में बहस करने के बजाय लड़की के बेहतरी का सोचा जाना चाहिए.


तो लड़की बन जाएगी मुख्य गवाह


याचिकाकर्ता मां ने यह भी दावा किया था कि अस्पताल ने पुलिस को सूचित किए बिना गर्भावस्था को समाप्त करने से इनकार कर दिया है. जबकि परिवार शर्म और अपमान से के डर से मामले की रिपोर्ट नहीं करना चाहता है. याचिका में यह तर्क दिया गया कि यदि मामला पुलिस को सूचित किया जाता है तो वह लड़के के खिलाफ बलात्कार की एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य होंगे. क्योंकि नाबालिग लड़की की सहमति मायने नहीं रखती है. जिस समय प्राथमिकी दर्ज की जाएगी पीड़िता का बयान भी दर्ज किया जाएगा, जिसमें वह मुख्य गवाह बनेगी.


मालूम हो कि याचिका में कहा गया था कि अगर गर्भ को समाप्त करने की अनुमति नहीं दी जाती है तो नाबालिग अपनी कम उम्र के कारण बच्चे की परवरिश नहीं कर पाएगी.


केंद्र के खर्च पर हो गर्भपात


पीठ ने केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि गर्भपात की पूरी प्रक्रिया एम्स में उनके खर्च पर हो. मामले की सुनवाई अब 18 जनवरी को होगी, जब अदालत पॉक्सो अधिनियम की धारा 19(1) की संवैधानिक वैधता पर फैसला सुनाएगी.


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