Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने राम गौ रक्षा दल की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सभी आवश्यक सामग्री जिन वस्तुओं से मिल कर बनी है अब उत्पादक कंपनियों को उसका खुलासा करना होगा.  जिससे उपभोक्ता शाकाहारी और मांसाहारी का निर्धारण कर सके. इस पर पीठ ने आगे कह कि लोगों को यह जानने का अधिकार है कि वह क्या उपभोग कर रहे हैं, उन्हों जो परोसा जा रहा है उसमें किसी भी तरह का छलावा या प्रपंच का सहारा तो नहीं लिया जा रहा है. 


हिंदुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुये कहा जस्टिस विपिन सांघी और जसमीत सिंह की बेंच ने कहा कि वस्तु के निर्माण प्रक्रिया में जिन चीजों का प्रयोग किया गया है उनको केवल लिख कर कोड के माध्यम से ही न दर्शाया जाये बल्कि वस्तु को बनाने में पौधे या जानवर, प्राक्रतिक रूप से या प्रयोगशाला में बना है इसकी भी चर्चा होनी चाहिये. 

साथ ही कोर्ट ने इस बात को भी दर्शाने का आदेश दिया कि अगर उस वस्तु में जानवर या पौधे के इस्तेमाल हुआ है तो उसकी कितनी मात्रा में किया गया है. कोर्ट ने अपने आदेश में यह साफ तौर पर जाहिर करने को कहा वस्तु को बनाने में किस स्रोत का इस्तेमाल किया गया है, चाहे वह जानवर हों या पौधे और कितनी मात्रा में इसका प्रयोग किया गया है. फ़ूड बिज़नेस ऑपरेटर्स को को कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा कि रेगुलेशन एक्ट 2.2.2(4) के तहत वस्तु के आधार पर यदि उसको बनाने में जानवर का इस्तेमाल होता है तो उसे मांसाहारी की श्रेणी में रखा जाये.

बेंच ने इस बात का भी उल्लेख किया कि यह देखा गया कि कुछ खाने की चीजें जिनको बनाने का स्रोत जानवर होते हैं, उनको भी उत्पादक कंपनियां पैकेट पर ग्रीन निशान के माध्यम से शाकाहरी बताती हैं.


राम गौ रक्षा दल ने अपनी याचिका में कोर्ट से कहा कि खाने और कास्मेटिक को शाकाहारी या मांसाहारी केवल इस आधार पर ही न दर्शाया जाये कि उसको बनाने में इस्तेमाल होने वाली वस्तु क्या है बल्कि उसमें इस्तेमाल में लायी गयी चीज का कितनी मात्रा में मिली है, इसको भी बताया जाना चाहिए. जिस पर कोर्ट ने कड़ा रुख दिखाते हुए हुए कहा बिज़नेस ऑपरेटर को इसका पालन न करने की हालत में सख्त कार्रवाई की जायेगी.

कोर्ट ने इस पर आगे कहा कि यदि संबंधित अथॉरिटी खाद्य वस्तुओं के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली मांसाहारी वस्तुओं को लिस्ट नहीं करती हैं तो यह व्यापक स्तर पर जनसमूह को धोखा देने के सामान है और ऐसे लोग जो शुद्ध शाकाहरी हैं उनके मैलिक अधिकारों का हनन है.  न्यायलय ने अपने 9 दिसम्बर के आदेश में कहा कि यह मामला सिर्फ किसी वस्तु के बनाने की प्रक्रिया में जानवरों का कितने प्रतिशत भाग इस्तेमाल हुआ है नहीं है. उनको बनाने की प्रक्रिया भले ही बहुत कम मात्रा में मांसाहार का प्रयोग हुआ है लेकिन इससे एक शाकाहारी व्यक्ति को वह मांसाहार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है. जिससे व्यक्ति विशेष की धार्मिकसा और सांस्कृतिक आस्था और भावनाओं को ठेस पहुँचती है. 

ट्रस्ट ने अपने याचिका में यह तर्क दिया कि हर नागरिक को यह जानने का मौलिक अधिकार है कि वह जो खाना, कपड़ा, कॉस्मेटिक का सामान, परफ्यूम और दूसरी चीजें जो इस्तेमाल करता है उसमें जानवर के जिस्म का कौन सा हिस्सा और कितनी मात्र में प्रयोग किया गया है. 9 दिसम्बर को याची को कोर्ट ने बताया कि E631 वस्तुओं के पैकेट पर दिया जाता है वह डाईसोडियम आइनोंसाईनेट को दर्शाती है.


कोर्ट ने आगे बताया कि आमतौर पर इसका इस्तेमाल खाने का एडिक्ट बनाने के लिए किया जाता है, जो नूडल्स, आलू के चिप्स  और दूसरे खाने की चीजों में मिलाया जाता है. जिसे मांस या मछली से बनाया जाता है. वहीं इस पर कोर्ट ने आगे कहा कि google पर थोडा सा सर्च करने पर मिलता है की इसका मुख्य स्रोत सूअर की चर्बी है. हालाँकि यह फ़ूड एडीटिव है फिर भी फ़ूड ऑपरेटर्स इसको अपने पैकेट पर नहीं दर्शाती हैं. नियमों के आधार पर ऐसे फ़ूड आइटम्स मांसाहार उत्पाद की श्रेणी में आते हैं. 


फूड सेफ्टी एंड स्टैण्डर्ड अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (FSSAI)  ने दिल्ली हाई कोर्ट में बताया कि सभी फ़ूड बिज़नेस ऑपरेटर्स को उनके पैकेट पर जरुरी वस्तु को (जिनसे वह खाने की वस्तु बनी है) को दर्शाना आवश्यक है और इन उत्पादक कंपनियों को यह भी सुनश्चित करने को कहा गया है की वह पैकेट पर टैग लगा कर लाल निशान (मांसाहार) और हरा (शाकाहारी) के ज़रिये श्रेणीबद्ध करने को कहा गया है जैसा की लीगल मैट्रोलोजी (पैकेज कमोडिटी) नियम 2011 में है. इस याचिका पर अगली सुनवाई 31 जनवरी 2022 को होगी, जिसमें कास्मेटिक आइटम्स के दृष्टिकोण को देखते हुए निर्णय देने की सम्भावना है. 


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