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दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि देश की सेवा करने वाले CRPF कर्मी को इससे बेहतर बर्ताव मिलना चाहिए था. कोर्ट ने यह टिप्पणी उस सब-इंस्पेक्टर के मामले में की जो बीते 20 साल से अनुशासनात्मक कार्रवाई से जुड़ी लड़ाई लड़ रहा था. जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और सौरभ बनर्जी की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता को मैदान में देश की सेवा करनी चाहिए थी, न कि दो दशकों तक अदालतों के चक्कर काटने पड़ते.

दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल याचिका के मुताबिक यह मामला 1996 का है जब CRPF के सब-इंस्पेक्टर पर आदेशों की अवहेलना का आरोप लगाकर चार्जशीट दी गई थी. जांच अधिकारी ने उन्हें बरी कर दिया लेकिन अनुशासन प्राधिकारी ने असहमति जताते हुए जबरन रिटायर का आदेश दे दिया. इसके बाद जवान ने अदालत का रुख किया. अदालत ने मामला फिर से विचारने को कहा मगर विभाग ने बार-बार वही फैसला दोहराया.

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'विभाग का रवैया भरा हुआ था बदले की भावना से'

इस बीच तीन बार हाईकोर्ट और पांच बार अनुशासन प्राधिकारी के सामने सुनवाई हुई. हाईकोर्ट ने पाया कि अनुशासन प्राधिकारी ने कभी यह स्पष्ट नहीं बताया कि वह जांच अधिकारी की रिपोर्ट से असहमत क्यों है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे विभाग का रवैया बदले की भावना से भरा हुआ था.

दिल्ली हाई कोर्ट ने जताई नाराजगी

दिल्ली हाई कोर्ट ने यह भी पाया कि विभाग ने UPSC की सलाह को जवान को नहीं दिखाया जबकि नियमों के मुताबिक यह जरूरी था. इसे अदालत ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया. कोर्ट ने कहा विभाग का व्यवहार न सिर्फ पक्षपातपूर्ण था बल्कि कठोर भी. एक CRPF कर्मी, जो देश की सेवा में था उसके साथ बेहतर बर्ताव होना चाहिए था.

हालकि दिल्ली हाईकोर्ट ने जवान को राहत देते हुए आदेश दिया कि उसकी सेवा अवधि को ड्यूटी पर बिताया गया समय माना जाए और उसे सभी वित्तीय लाभ दिए जाएं. अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों से सरकारी खजाने को नुकसान होता है और यह गलत संदेश देता है.