Delhi News: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने कहा है कि विवाह में पसंद की स्वतंत्रता संविधान का एक आंतरिक हिस्सा है और आस्था के सवालों का जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि पुलिस से उम्मीद की जाती है कि वह ऐसे जोड़ों की सुरक्षा के लिए त्वरित और संवेदनशीलता के साथ कार्रवाई करे जिन्हें अपने परिवार के सदस्यों सहित अन्य लोगों से खतरे की आशंका है.

क्या है पूरा मामला?अदालत ने यह टिप्पणी शिकायतकर्ता व्यक्ति पर हत्या के कथित प्रयास और शारीरिक हमले से जुड़े मामले से संबंधित जमानत याचिकाओं पर गौर करते हुए की. शिकायतकर्ता ने जिस महिला से शादी की थी, उसके परिवार के लोगों ने उस पर कथित तौर पर हमला किया था. महिला ने अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी की थी. शिकायत के अनुसार, शिकायतकर्ता की पत्नी के परिवार के सदस्यों ने उसका अपहरण कर लिया था और बेरहमी से उसकी पिटाई की और धारदार हथियारों से भी हमला किया.

'इस चूक को नहीं किया जा सकता स्वीकार'उच्च न्यायालय ने कहा कि यह 'दुर्भाग्यपूर्ण' है कि संबंधित थाने द्वारा दंपती की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उनकी शिकायत पर नहीं उठाए गए, जबकि उनसे तत्परता के साथ कार्रवाई की उम्मीद थी. अदालत ने कहा कि इस तरह की किसी भी चूक को स्वीकार नहीं किया जा सकता और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. अदालत ने दिल्ली पुलिस आयुक्त से कहा कि वह ऐसी शिकायतों से निपटने के लिए पुलिस अधिकारियों को संवेदनशील बनाने की खातिर आवश्यक कदम उठाएं.

न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने अपने एक हालिया आदेश में कहा, 'कानून के अनुसार विवाह में निजी पसंद की स्वतंत्रता भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का अंतर्निहित हिस्सा है.यहां तक ​​कि, आस्था के सवालों का भी जीवनसाथी चुनने की किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई असर नहीं पड़ता और यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूलतत्व है.

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