Delhi High Court: दिल्ली सरकार ने बृहस्पतिवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में कहा कि ऐसे पुलिसकर्मी जो कोविड ड्यूटी पर नहीं थे और संक्रमण से उनकी मौत हुई, उनके परिजन एक करोड़ रुपये का मुआवजा पाने के हकदार नहीं हैं. दिल्ली सरकार के वकील ने नियमित तौर पर तैनात होने वाले पुलिसकर्मियों के मामले को अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टरों से पृथक किया और कहा कि सड़कें उतनी "जोखिम" भरी नहीं होतीं और उचित सावधानी बरतना संभव है.



सड़को से अधिक जोखिम भरा है कोविड का अस्पताल
दिल्ली सरकार के वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव को बताया, "सड़कें उतनी जोखिम भरी नहीं होती जितना कोविड-19 मरीजों का अस्पताल. (सड़क पर खड़ा) व्यक्ति सावधानी बरत सकता है. पुलिस को (मरणोपरांत मुआवजे की योजना में) इसलिए शामिल किया गया क्योंकि उन्हें कोविड-19 ड्यूटी पर तैनात किया गया था."

दायर याचिका में की गई थी एक करोड़ रुपये मांग
अदालत एक दिवंगत कांस्टेबल और अपराध शाखा में तैनात दिवंगत फिंगरप्रिंट विशेषज्ञ के परिजनों की ओर से दायर याचिका याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें एक करोड़ रुपये मुआवजा जारी करने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. न्यायाधीश ने "कर्फ्यू सुनिश्चित करने के लिए सड़क पर खड़े एक पुलिसकर्मी" के बारे में प्रश्न किया जिस पर वकील ने कहा कि "संक्रमण से भरे अस्पताल" की तुलना में "सड़क उतनी जोखिम भरी नहीं होती."

आपको बता दें कि वकील ने अदालत को बताया कि संबंधित विभागों के प्रमुखों द्वारा जारी आदेश के तहत पुलिसकर्मियों को कोविड-19 ड्यूटी पर भेजा गया. जिसमें अस्पताल, ऑक्सीजन प्लांट इत्यादि में तैनाती की गई थी.


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