दिल्ली हाई कोर्ट ने तिहाड़ जेल प्रशासन को जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक की सेहत को ध्यान में रखते हुए बेहतर इलाज उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं. यासीन मलिक इस समय आतंकी फंडिंग मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं.

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दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने यह आदेश तब दिया जब कोर्ट में तिहाड़ जेल की मेडिकल रिपोर्ट पेश की गई. रिपोर्ट के मुताबिक यासीन मलिक किसी जानलेवा बीमारी से पीड़ित नज़र नहीं आते. हालांकि कोर्ट ने साफ कहा कि अगर जेल अस्पताल में जरूरी सुविधाएं नहीं हैं तो मलिक को ऐसे सरकारी अस्पताल में ले जाया जाए, जहां उनका इलाज संभव हो सके.

दरअसल, यासीन मलिक ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया था कि उन्हें गंभीर दिल और किडनी की बीमारी है और वे जीवन-मृत्यु की स्थिति से जूझ रहे हैं. उनकी ओर से पेश वकील ने कहा कि तिहाड़ जेल में कार्डियोलॉजिस्ट नहीं है, इसलिए यासीन मलिक को एम्स या किसी सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल ले जाना ज़रूरी है.

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इलाज के लिए बाहर ले जाने पर सरकार की आपत्ति

दिल्ली हाई कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यासीन मलिक हाई-रिस्क कैदी हैं. ऐसे में उन्हें जेल से बाहर ले जाना सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक हो सकता है. उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर जेल परिसर में ही डॉक्टर बुलाए जा सकते हैं. यासीन मलिक ने अपनी याचिका में यह भी आरोप लगाया कि कई बार सेहत खराब होने या अदालत में पेशी की जरूरत होने पर भी, सीआरपीसी की धारा 268 का हवाला देकर उन्हें अस्पताल या कोर्ट नहीं ले जाया गया. उनके मुताबिक, यह उनके अधिकारों का उल्लंघन है .

बेहतर इलाज सुनिश्चित करने के लिए हाई कोर्ट के निर्देश

दिल्ली हाई कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद तिहाड़ जेल प्रशासन को आदेश दिया कि वे मलिक की मेडिकल जरूरतों को नजरअंदाज न करें. अगर किसी जांच या इलाज के लिए बाहरी अस्पताल ले जाना जरूरी हो, तो कानून और सुरक्षा के दायरे में रहकर ऐसा किया जाए. कोर्ट ने यह भी दोहराया कि उपलब्ध रिकॉर्ड में मलिक को कोई लाइफ-थ्रेटनिंग बीमारी नहीं दिखती, लेकिन बेहतर इलाज देना जेल प्रशासन की जिम्मेदारी है.