Delhi News: दिल्ली उच्च न्यायालय ने तलाक और गुजारा भत्ता से जुड़े एक मामले में साफ कर दिया है कि पत्नी के खिलाफ क्रूरता होने भर से घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत उसे गुजारा देने से कोई इनकार नहीं कर सकता. जस्टिस अमित बंसल ने ऐसे ही एक मामले को लेकर अपने आदेश में रखरखाव के दावों की स्वतंत्रता पर जोर दिया और प्रत्येक कानूनी प्रावधान पर उसके विशिष्ट संदर्भ में विचार करने के महत्व को रेखांकित किया. उन्होंने यह भी कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 29 के तहत अपील में सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में एक पुनरीक्षण याचिका दायर की जा सकती है.


दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट में यह मामला एक सत्र न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ एक पत्नी की याचिका के जवाब में आया, जिसने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें पति को भरण-पोषण और मुआवजे के लिए प्रति माह एक लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था. यह मामला 1991 में हुई एक शादी से जुड़ा है और उसी साल एक बच्चे का जन्म हुआ. घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत 2009 में एक शिकायत दर्ज की गई थी और मध्यस्थता के दौरान एक समझौता हुआ था.


मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में कहा था कि पत्नी को पति के हाथों घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा था. पति ने सत्र न्यायालय के समक्ष इस आदेश को चुनौती दी थी, जिसने कोई अंतरिम गुजारा भत्ता तय किये बिना मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया. न्यायमूर्ति बंसल ने कहा कि पत्नी द्वारा दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य है. पति को 16 दिसंबर 2009 से 01 नवंबर 2019 तक अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 50 हजार रुपये का मासिक भुगतान करने का निर्देश दिया.


हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के फैसले को बताया गलत


अदालत ने कहा कि अंतरिम गुजारा भत्ता तय किए बिना मामले को रिमांड पर लेने का सत्र अदालत का निर्णय अनुचित था. इसमें तर्क का अभाव था. इसमें कहा गया है कि अपील का फैसला रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के आधार पर किया जाएगा. और दोनों पक्षों को 2019-20 के बाद परिस्थितियों में किसी भी बदलाव को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त सबूत पेश करने की स्वतंत्रता होगी.


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