Delhi Riots News: उत्तर पूर्वी दिल्ली में 2020 में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में दिल्ली कानूनी सेवा प्राधिकरण —डीएलएसए—  द्वारा तैयार की जा रही विक्टिम इम्पैक्ट रिपोर्ट (वीआईआर) पर सुनवाई हुई. इस मामले में अदालत ने पाया कि प्राधिकरण सचिव की ओर से मिला एक गुप्त पत्र बेहद परेशान करने वाला है. न्यायाधीश ने पत्र की एक प्रति जारी करते हुए पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) को इस पर "तत्काल आवश्यक कार्रवाई" करने का आदेश दिया.


इस मामले पर पिछली सुनवाई में दिल्ली की कोर्ट ने विक्टिम इम्पैक्ट रिपोर्ट तैयार करने में देरी को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया था. शनिवार सुबह करीब 10 बजकर 30 मिनट पर यह मामला सुनवाई के लिए कोर्ट के सामने आया. कोर्ट ने कहा कि डीसीपी और डीएलएसए की ओर से अभी तक कोई जवाब नहीं आया. 


इसके बाद अदालत ने यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि दिल्ली दंगा मामले में वीआईआर रिपोर्ट के आधार पर मुकदमा दर्ज किया गया है या नहीं, डीसीपी और डीएलएसए दोनों को एक अनुस्मारक पत्र जारी किया. साथ ही इस मामले में आगे की 20 अप्रैल के लिए तय की है. 


पत्र में शामिल तथ्य गंभीर 


इससे पहले सुबह 11 बजे अदालत को एक सीलबंद लिफाफा मिला था. लिफाफे में डीएलएसए का एक पत्र था. उन्होंने सभी पक्षों से कहा कि डीएलएसए सचिव के पत्र का मैंने अध्ययन किया है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा कि डीएलएसए के पत्र में शामिल तथ्य बहुत परेशान करने वाले हैं. 


दरअसल, दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपराध के पीड़ितों को उनकी शारीरिक, भावनात्मक और वित्तीय कठिनाइयों सहित हुए नुकसान की मात्रा का आकलन करने के लिए आरोपियों की सजा के बाद वीआईआर तैयार करने की प्रक्रियाएं निर्धारित की है. दोषसिद्धि के बाद प्रत्येक आपराधिक मुकदमे में डीएलएसए को ट्रायल कोर्ट के समक्ष वीआईआर दाखिल करना होता है. 


एसएचओ की लापरवाही गंभीर


शनिवार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रमाचला दिल्ली हिंसा से जुड़े जॉनी कुमार के खिलाफ दलीलें सुन रहे थे, जिन्हें दंगा और आगजनी के लिए सजा सुनाई गई थी. उसी समय उन्होंने डीसीपी (पूर्वोत्तर) को डीएलएसए के पत्र के आधार पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया. ये भी कहा कि आप अपने स्टेशन हाउस अधिकारियों (एसएचओ) और आईओ को संवेदनशील बनाएं. यह मामला गंभीर है. ताकि पीड़ितों को डीएलएसए के समक्ष जल्द से जल्द प्रस्तुत किया जा सके.


डीएलएसए की रिपोर्ट में क्या है?


इससे पहले 1 अप्रैल को अदालत ने नोट किया था कि दिल्ली कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के सचिव ने अदालत से तय तारीख पर वीआईआर रिपोर्ट जमा कराने का अनुरोध किया है. पत्र में इस बात का भी जिक्र है कि जांच अधिकारी (आईओ) ने पीड़ितों में से एक को इंटरेक्शन में शामिल नहीं किया था. जस्टिस प्रमालचा ने इस मामले में “दुर्भाग्यपूर्ण” बताया. साथ ही कहा कि यही वजह है कि वीआईआर रिपोर्ट तैयार करने में देरी हुई. 


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