दिल्ली के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा को कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. दिल्ली की एक अदालत ने 2013 में कांग्रेस कार्यालय के पास हुए कथित अनधिकृत विरोध प्रदर्शन के मामले में मनजिंदर सिंह सिरसा और 9 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया है. 

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अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा. यह फैसला 23 सितंबर को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नेहा मित्तल की अदालत ने सुनाया. इस फैसले के बाद सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया.

क्या था मामला?

दरअसल, तुगलक रोड पुलिस थाने में मई 2013 में दर्ज FIR के अनुसार, आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 147 (दंगा), 149 (गैरकानूनी सभा), 188 (लोक सेवक द्वारा जारी आदेश की अवज्ञा) और 427 (पचास रुपये या उससे अधिक की क्षति पहुंचाने वाली शरारत) के तहत मामला दर्ज हुआ था.

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आरोप था कि 2 मई 2013 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यालय के सामने 600 लोगों के साथ मिलकर विरोध प्रदर्शन किया गया और सरकारी बस की खिड़की के शीशे तोड़े गए.

अदालत ने क्या कहा?

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि आरोपियों का एकत्र होना गैरकानूनी था और न ही यह कि उन्हें अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत आदेश की घोषणा के बाद तितर-बितर होने के लिए कहा गया था.

सरकारी बस की खिड़की तोड़ने के मामले पर अदालत ने टिप्पणी की कि क्षति ‘भीड़ की वजह से’ हुई थी, किसी विशेष आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत नहीं है. इसलिए सभी 10 आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया.

आरोपी और फैसला

इस मामले में दिल्ली के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा के अलावा मनजीत सिंह जीके, ओंकार सिंह थापर, कुलदीप सिंह भोगल, मनदीप कौर बख्शी, अवतार सिंह हित, हरजीत सिंह, हरमीत सिंह कालका, तेजिंदर पाल सिंह गोल्डी और बलजीत कौर आरोपी थे.

अदालत ने सभी को बरी करते हुए कहा कि उपलब्ध साक्ष्य दोष साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. यह फैसला न केवल आरोपियों के लिए राहत है बल्कि भविष्य में राजनीतिक विरोध प्रदर्शनों से जुड़े मामलों के निपटारे को लेकर भी एक मिसाल मानी जा सकती है.