दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था लंबे समय से राजनीतिक बहस का केंद्र रही है. एक ओर अरविंद केजरीवाल सरकार अपने सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मॉडल का दावा करती रही है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी लगातार इसे खोखला बताती रही है. अब राज्यसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी द्वारा पेश किए गए आंकड़ों ने इस विवाद को और तेज कर दिया है. दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा का कहना है कि ये आंकड़े स्पष्ट रूप से साबित करते हैं कि केजरीवाल सरकार का शिक्षा मॉडल, चमकदार प्रचार भर है हकीकत नहीं.

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कोविड काल में छात्रों का फेल होना और पढ़ाई छोड़ने की बढ़ती संख्या

कोविड काल में बड़ी संख्या में छात्र हुए फेल, हजारों ने छोड़ दी पढ़ाई दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष ने बताया कि कोविड अवधि के दो सालों—2020-21 और 2021-22 में नौवीं कक्षा में क्रमशः 31,541 और 28,548 छात्र फेल हुए. चौंकाने वाली बात यह रही कि इनमें से केवल 11,322 और 10,598 छात्रों ने ही ओपन स्कूल के माध्यम से अपनी पढ़ाई जारी रखी. बाकी 39,519 छात्रों ने शिक्षा ही छोड़ दी, जो दिल्ली के बेहतर शिक्षा मॉडल पर गंभीर सवाल खड़े करता है.

2022-23 और 2023-24 में बढ़ते फेलियर के आंकड़े

2022-23 में बढ़े फेल होने वाले छात्र, शिक्षा का ग्राफ फिर गिरा सचदेवा ने बताया कि 2022-23 में स्थिति और चिंताजनक रही. उस वर्ष कुल 88,421 छात्र नौवीं में फेल हुए, जिनमें से सिर्फ 29,436 छात्र ही ओपन स्कूल से आगे पढ़ पाए. शेष विद्यार्थियों की पढ़ाई बीच में ही रुक गई. दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि 2023-24, जब आतिशी मार्लेना शिक्षा मंत्री बनीं, नौवीं कक्षा में फेल होने वाले छात्रों की संख्या 1,01,344 तक पहुंच गई, जो अब तक का सबसे अधिक आंकड़ा है. इस विशाल संख्या में से केवल 7,794 छात्रों ने ओपन स्कूल में दाखिला लेकर पढ़ाई जारी रखी.

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2024-25 की स्थिति और बीजेपी का आरोप

2024-25 में भी नहीं सुधरे हालात, हजारों छात्र पढ़ाई से हुए दूर सचदेवा ने आगे बताया कि 2024-25 में भी तस्वीर बदली नहीं. इस साल 70,296 छात्र नौवीं में फेल हुए, लेकिन उनमें से महज 11,974 ने ही आगे की पढ़ाई के लिए ओपन स्कूल का सहारा लिया. बाकी छात्र शिक्षा व्यवस्था से दूर होते चले गए. बेहतर रिज़ल्ट दिखाने के लिए नौवीं में फेल किया गया छात्रों को वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि बीजेपी पहले से कहती आ रही है कि केजरीवाल सरकार दसवीं का सर्वश्रेष्ठ परिणाम दिखाने के लिए नौवीं में बड़े पैमाने पर कमजोर छात्रों को फेल कर देती थी. उनका दावा है कि संसद में पेश किए गए आधिकारिक आंकड़े अब इस आरोप की पुष्टि करते हैं, और यह साबित करते हैं कि “दिल्ली मॉडल” की चमक, छात्रों की वास्तविक शैक्षिक स्थिति पर पर्दा डालने का एक तरीका था.