देवेन्द्र यादव ने बीजेपी मंत्री आशिष सूद के उस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी, जिसमें दिल्ली में 20000 से अधिक बेघरों के सोने की व्यवस्था होने का दावा किया गया है. उन्होंने कहा कि सरकार आंकड़ों की बाजीगरी बंद करे क्योंकि जमीनी सच्चाई इन दावों की पोल खोल रही है.

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नियमों के अनुसार एक व्यक्ति के लिए न्यूनतम 50 वर्गफीट जगह जरूरी है, जबकि दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के पास कुल उपलब्ध जगह 441198 वर्गफीट ही है. इस हिसाब से अधिकतम 8823 लोगों के ठहरने की ही व्यवस्था हो सकती है, ऐसे में सरकार का दावा पूरी तरह खोखला साबित होता है.

न्यूनतम मानकों और सुरक्षा की अनदेखी

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और उनके मंत्री केवल आंकड़ों के मायाजाल से दिल्ली की जनता को भ्रमित कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि कागजी दावों से हकीकत नहीं बदली जा सकती और सरकार को अपनी नाकामी स्वीकार करनी चाहिए. उन्होंने मांग की कि बीजेपी सरकार रैन बसेरों में न्यूनतम मानकों का सख्ती से पालन करे.

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उन्होंने कहा कि महिला सुरक्षा, स्वच्छता, भोजन और कंबलों की तत्काल व्यवस्था की जानी चाहिए. तभी बेघर, प्रवासी मजदूर और जरूरतमंद लोगों को सम्मानजनक ढंग से रहने की सुविधा मिल सकेगी.

स्वतंत्र निगरानी और सामाजिक ऑडिट की मांग

यादव ने कहा कि रैन बसेरों की स्वतंत्र एजेंसी से नियमित मॉनिटरिंग और सामाजिक ऑडिट कराया जाना चाहिए. बेघर नागरिकों को दया नहीं बल्कि सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन का पूरा अधिकार है. सरकार को कागजी रिपोर्टों से बाहर निकलकर जमीनी सच्चाई पर काम करना होगा.

कांग्रेस और एक सामाजिक संस्था द्वारा सर्द रातों में किए गए निरीक्षण के दौरान कई गंभीर अनियमितताएं सामने आईं. पैगोडा टेंटों में लगे मोबाइल टॉयलेट बदहाल, बदबूदार और टूटे हुए पाए गए. हाथ धोने के लिए टंकियां तो थीं, लेकिन उनमें पानी नहीं था. सफदरजंग और एम्स के पास के रैन बसेरों में महिलाओं ने बताया कि एनडीएमसी के शौचालय रात में बंद रहने से उन्हें भारी परेशानी होती है, जबकि मोबाइल टॉयलेट उपयोग के लायक नहीं हैं.

खाने, कंबल और अस्थाई रैन बसेरों पर गंभीर सवाल

रोहिणी स्थित काली मंदिर के रैन बसेरे में रहने वाले लोगों ने शिकायत की कि खाने और चाय का मेनू तय मानकों के अनुसार नहीं मिलता और अक्सर खाना कम पड़ जाता है. कंबल कई महीनों से नहीं धुले होने के कारण बदबूदार पाए गए. निरीक्षण में यह भी सामने आया कि सरकार की ओर से किसी तरह की नियमित जांच या निगरानी नहीं होती.

देवेन्द्र यादव ने बताया कि द्वारका, रोहिणी और गीता कॉलोनी जैसे इलाकों में एक ही इमारत में चार-चार नाइट शेल्टर के अलग-अलग कोड दर्शाए गए हैं. कई जगह केयरटेकर नदारद मिले और रेस्क्यू वाहन का कोई पता नहीं था. उन्होंने कहा कि सरकार केवल कागजी खानापूर्ति कर रही है.

कांग्रेस अध्यक्ष ने दावा किया कि डूसिब के रिकॉर्ड में 104 पोर्टा केबिन रैन बसेरे दिखाए गए हैं, जबकि जमीनी हकीकत में केवल 97 ही मौजूद पाए गए. उन्होंने याद दिलाया कि 8 दिसंबर को आशिष सूद ने 200 अस्थाई रैन बसेरे खोलने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक उस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. नतीजतन ठिठुरती ठंड में बेघर और बेसहारा लोग आज भी खुले आसमान के नीचे रात बिताने को मजबूर हैं.