लड़कियों के यौन शोषण के मामले में गिरफ्तार आरोपी बाबा चैतन्यानंद को लेकर एक बाद एक बड़े खुलासे हो रहे हैं. बाबा कभी सफेद पोश तो कभी लाल चोला अपनाने वाले बाबा के कई रूप सामने आए हैं.
दरअसल, चैतन्यानंद 20 साल पहले सफेद रंग के कपड़े पहनकर साधु के वेश में रहता था. श्रृंगेरी शारदा पीठ में आने के बाद भी उसने कई साल तक सफेद कपड़े पहने, लेकिन शारदा पीठ ज्वाइन करने के बाद उसने लाल चोला ओढ़ लिया. सूत्रों के मुताबिक बाबा सफेद कपड़ो में भी अपराध करता रहा है.
सूत्रों की मानें तो बाबा ने उत्तराखंड के टिहरी में रामकृष्ण मिशन ज्वाइन किया था. तब बाबा ने सफेद चोला पहना था. वहां 2003 में उसने अपना नाम भी पार्थसारथी रुद्र से बदलकर डॉ. पार्थसारथी रख लिया था. इसके एफिडेविड की कॉपी है, लेकिन उसने रामकृष्ण मिशन ज्वाइन करने बाद वहां अकाउंट में हेराफेरी की इसके चलते उसे वहां से निकाल दिया गया था.
2004 में बनवाया फर्जी एफिडेविट
वहीं साल 2004 में बाबा ने एक और एफिडेविट बनवाया, इसमें जो फोटो है उसमें भी बाबा ने सफेद कपड़े पहने हुए है. इस एफडेविड में बाबा ने बताया कि वो टिहरी के ओंकारानंद इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी में लेक्चरर है. बाबा ने इस एफिडेविड में किसी राहुल खान नाम के शख्स को अपना चचेरा भाई बताया.
22 किताबें, 122 रिसर्च आर्टिकल लिखने का दावा
इतना ही नहीं बाबा खुद को ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन का मेंबर बताता था. वो दावा करता था कि उसने 22 किताबें और 122 रिसर्च आर्टिकल लिखे हैं. बाबा को ओडिशा पुलिस ने भी 2014 में एक मामले में नोटिस जारी किया था.
फर्जीवाड़े के कारण रामकृष्ण मिशन ने निकाला
रामकृष्ण मिशन ने एक आधिकारिक पत्र में साफ किया है कि खुद को डॉ. स्वामी पार्थसारथी या पार्थसारथी रुद्र कहने वाला व्यक्ति उनके संगठन से कभी भी औपचारिक रूप से जुड़ा नहीं था. मिशन ने बताया कि ये व्यक्ति कुछ समय के लिए मिशन के एक आश्रम में काम जरूर करता था, लेकिन बाद में धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के कारण उसे बाहर कर दिया गया था.
रामकृष्ण मिशन की तरफ से 5 सितंबर 2025 को श्रींगेरी शारदा पीठ को लिखे पत्र में पूरी जानकारी दी गई. मिशन के मुताबिक उसे स्वामी गहानानंद जी से मंत्र दीक्षा तो मिली थी, लेकिन उसे कभी ब्रह्मचारी या संन्यासी के रूप में दीक्षित नहीं किया गया. यानी वो मिशन का अधिकृत संन्यासी या साधु नहीं था.
2001 में केरल के आश्रम से निकाला गया
2001 में उसे केरल के कालडी आश्रम भेजा गया, लेकिन कुछ ही समय बाद उस पर आश्रम के खातों में हेराफेरी और ई-मेल फर्जीवाड़े के आरोप लगे. इसके बाद मार्च 2002 में उसे मिशन से निकाल दिया गया. वहीं साल 2008 में, मिशन को फिर एक शिकायत मिली इस बार दिल्ली की एक छात्रा ने बताया कि स्वामी (डॉ.) पार्थसारथी नाम का व्यक्ति खुद को रामकृष्ण मिशन का संन्यासी बताकर दिल्ली के श्रींगेरी शारदा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट का चेयरमैन बना बैठा है और दावा करता है कि उसने प्रधानमंत्री कार्यालय व नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के साथ काम किया है.
जांच में पाया गया धोखेबाज
छात्रा ने ये भी लिखा कि जांच करने पर पता चला कि वह व्यक्ति पूरी तरह धोखेबाज है. वो रामकृष्ण विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन नाम से एक संगठन चलाता है. शिकायत में ये भी कहा गया कि जापानी दूतावास और ओडिशा सरकार ने भी उस पर कानूनी कार्रवाई की है. रामकृष्ण मिशन ने अपने जवाब में कहा कि वो अब किसी भी रूप में मिशन से जुड़ा नहीं है.