Chherchera Festival In Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां सबसे अनोखा कल्चर है. केवल छत्तीसगढ़ में ही पौष पूर्णिमा पर घर-घर धान मांगने की परंपरा है. राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी धान मांगने के लिए घर-घर जाते हैं. इसे छेर-छेरा त्योहार के नाम से जाना जाता है. आज प्रदेशभर में धूमधाम से ये त्यौहार मनाया जा रहा है. बच्चे, बूढ़े और जवान, अमीर और गरीब सब कोई एक दूसरे को दान देते हैं. इसलिए राज्य में इस त्योहार को महा दान का त्योहार भी कहा जाता है. चलिए इस त्योहार की खासियत जानते है.


छत्तीसगढ़ में धूमधाम से मनाया जा रहा है छेरछेरा


दरअसल छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है. छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है. राज्य में खेती किसानी से जुड़ा ये त्यौहार है. इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं. इसे दान लेने-देने पर्व माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती. इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं. ग्रामीण इलाकों में केवल धान से दान होता है. लेकिन शहरी इलाकों में चावल, पैसे और सब्जियों को छेरछेरा के रूप में दान दिया जाता है.





सनातन काल से है छत्तीसगढ़ में धान के दान की परंपरा


छेरछेरा त्योहार की खासियत को लेकर एबीपी न्यूज ने रायपुर के ऐतिहासिक मठ दूधा धारी मठ के महंत राम सुंदर दास से खास बातचीत की है. उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ का लोक जीवन प्राचीन काल से ही दान परम्परा रही है. किसान धान की बोनी से लेकर कटाई और मिंजाई के बाद कोठी में रखते तक दान परम्परा का निर्वाह करता है. सनातन समय से धान के दान की परंपरा है. इसे हम समानता का त्योहार मानते है. क्योंकि इसमें हर कोई दान लेता और दान देता है. यहां तक राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी मठ में छेरछेरा मांगने आते हैं. दान की राशि को मुख्यमंत्री के राज्य के लिए दान कर देते हैं. 


माई कोठी के धान ला हेर हेरा


महंत राम सुंदर दास ने आगे बताया कि छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा मांगते हैं. दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं. माई कोठी मतलब घर में धान संग्रहण करने वाला प्रमुख घर से. जहां से बच्चो के लिए धान निकाल कर दान किया जाता है. इसके आगे इस प्रार्किया में बच्चों प्यारी ज़िद भी देखने को मिलता है. जब तक घर वाले अन्न दान नहीं देते तब तक बच्चे घर के दरवाजे में खड़े रहते और आगे कहते है कि अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’ इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे.


छेरछेरा सामाजिक समानता का त्योहार है


महंत राम सुंदर दास ने आगे बताया कि छेरछेरा त्योहार में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक असमानता को दूर करने का संदेश छिपा है. इस लिए इसे समानता का त्योहार भी हम कहते है. इस त्योहार में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है.पहले स्कूल के शिक्षक भी बच्चों के साथ गांव में छेरछेरा मांगने जाते थे. छेरछेरा से मिले पैसे से स्कूल के लिए जरूरी सामान खरीदते थे. यानी इस पैसे का सदुपयोग किया जाता है.


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