Dussehra 2022: देशभर में अधर्म पर धर्म की जीत का जश्न रावण के पुतले का दहन कर मनाया जाता है. इस साल भी देश के हर कोने में रावण पुतला का दहन किया जाएगा, इसके लिए बड़ी तैयारी की जा रही है. छत्तीसगढ़ में भी दशहरे के पर्व की तैयारी चल रही है. आज आपको बताते हैं छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के सबसे अनोखे दशहरे की कहानी जहां रावण का पुतला दहन के पहले गढ़ विच्छेदन किया जाता है.


छत्तीसगढ़ का सबसे अनोखा दशहरा
दरअसल राज्य के नए जिले सारंगढ़ (Sarangarh) में 100 साल से अधिक समय से गढ़ विच्छेदन की परंपरा है. इसे सारंगढ़ राजपरिवार ने शुरुआत किया था जो आज भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. मिट्टी के गढ़ में युवा चढ़ाई करते हैं. गढ़ विच्छेदन सुनने में आसान लग रहा है उतना आसान नहीं है क्योंकि गढ़वीर वही बनता है जो मिट्टी के किले के ऊपर तैनात सैनिक की तरह गढ़ रक्षा कर रहे वॉलेंटियर के डंडे की मार सहने की क्षमता रखता हो. इसके अलावा गढ़ पर चढ़ने के लिए एक साथ कई युवा प्रतिभागी कोशिश करते हैं.


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गढ़ विच्छेद क्या है.?
सारंगढ़ के खेलभांटा मैदान में गढ़ के साथ रावण का पुतला बनाया जाता है जिसकी ऊंचाई 30 फीट से 40 फीट तक रहती है. पहले गढ़ विच्छेदन प्रतियोगिता का आयोजन होता है. इसके बाद ही रावण के पुतले का दहन किया जाता है. इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ती है. इसके अलावा सारंगढ़ राजपरिवार के सदस्य भी मौके पर पहुंचते हैं. कहा जाता है कि सारंगढ़ रियासत में ऐसे विजयी बहादुर को सेना में भर्ती किया जाता था. 


कैसे बनता है मिट्टी का गढ़
गढ़ को मिट्टी और गोबर के लेप से एकदम चिकना कर दिया जाता था. गढ़ के ऊपरी हिस्से को राजमहल के गढ़ की तरह रूप देकर सुसज्जित किया जाता था. प्रतिभागी कांटानुमा लोहे के पंजा को उस गढनुमा टीले में गड़ा देता था और गीली मिट्टी के कारण फिसलते-सम्हलते चढ़ता है. गढ़ के ऊपर कुछ व्यक्ति पहले से चढ़े रहते थे जो डंडे से किले के ऊपर चढने वाले को प्रहार करते थे लेकिन सबसे पहले पहुंचकर युवक ऊपर चढ़कर मिट्टी के बने गढ़ को तोड़ देता था.


ऐतिहासिक है सारंगढ़ दशहरा
गौरतलब है कि सारंगढ़ रियासत में तत्कालीन राजा जवाहिर सिंह के कार्यकाल में लगभग 100 साल पहले से सारंगढ़ का दशहरा-उत्सव बस्तर-दशहरा की तरह बहुत प्रसिद्व है जिसमें रावण दहन के अतिरिक्त मिट्टी के गढ़ में आम नागरिकों के मध्य सार्वजनिक स्थल खुले मैदान में शौर्य का प्रदर्शन किया जाता था. गढ़ विजेता को राजा साहब नकद राशि और शील्ड देकर पुरस्कृत करते थे.


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