छत्तीसगढ़ की विकास यात्रा में शनिवार (1 नवंबर) को एक स्वर्णिम अध्याय जुड़ गया. राज्य के 25वें स्थापना दिवस (रजत जयंती) के ऐतिहासिक अवसर पर, प्रधानमंत्री ने आज रायपुर में भव्य और आधुनिक छत्तीसगढ़ विधानसभा भवन का उद्घाटन किया. इस अवसर पर उन्होंने राज्य के निर्माता, भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को याद करते हुए कहा, "अटल जी, देखिए, आपका सपना साकार हो रहा है. आपका बनाया हुआ छत्तीसगढ़ आज आत्मविश्वास से भरा है."
इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रमन डेका, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, विधानसभा अध्यक्ष रमन सिंह, उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा व अरुण साव, और नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.
लोकतंत्र का तीर्थ और संस्कृति का प्रतिबिंब
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि यह भवन केवल एक इमारत नहीं, बल्कि 25 वर्षों की जन-आकांक्षा, जन-संघर्ष और जन-गौरव का उत्सव है. उन्होंने नए विधानसभा भवन को "लोकतंत्र का तीर्थ स्थल" बताते हुए कहा कि इसका हर स्तंभ पारदर्शिता का, हर गलियारा जवाबदेही का और हर कक्ष जनता की आवाज़ का प्रतिबिंब है.
उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि भवन के कण-कण में छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति की झलक है. प्रधानमंत्री ने कहा, "मैं जब इस भवन को देख रहा था, तो मुझे बस्तर आर्ट की सुंदर झलक दिखाई दी. इस भवन की दीवारों में बाबा गुरु घासीदास जी का ‘मनखे-मनखे एक समान’ का संदेश है और यहां बस्तर की 'आदिम संसद' मुरिया दरबार की परंपरा को भी स्थान मिला है."
'राम से राष्ट्र' और 'विकसित छत्तीसगढ़' का विजन
प्रधानमंत्री ने छत्तीसगढ़ को भगवान श्रीराम का ननिहाल बताते हुए सुशासन के लिए 'राम से राष्ट्र' का संकल्प दोहराया. उन्होंने कहा कि रामराज का अर्थ है 'सबका साथ, सबका विकास', जहाँ कोई गरीब या दुखी न हो. उन्होंने 'ऑपरेशन सिंदूर' का जिक्र करते हुए कहा कि भारत आज मानवता विरोधी ताकतों, आतंक और नक्सलवाद को समाप्त करने की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा है.
उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष रमन सिंह की सराहना करते हुए कहा कि वे एक सच्चे कार्यकर्ता की तरह राज्य की सेवा कर रहे हैं. प्रधानमंत्री ने सभी जनप्रतिनिधियों से 'विकसित भारत' के लिए 'विकसित छत्तीसगढ़' के निर्माण का आह्वान किया और कहा कि सदन का हर निर्णय किसान, युवा और नारीशक्ति के जीवन में नई आशा लेकर आना चाहिए.
प्रधानमंत्री ने आज छत्तीसगढ़ के 25वें स्थापना दिवस पर ब्रह्मकुमारीज संस्था द्वारा स्थापित "शांति शिखर - एकेडमी फॉर ए पीसफुल वर्ल्ड" (Academy for a Peaceful World) का उद्घाटन किया. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि यह संस्थान आने वाले समय में विश्व शांति के सार्थक प्रयासों का एक प्रमुख केंद्र बनेगा.
प्रधानमंत्री ने ब्रह्मकुमारीज संस्था के साथ अपने दशकों पुराने आत्मीय जुड़ाव को याद करते हुए कहा, "मैं यहां अतिथि नहीं हूं, मैं आप ही का हूं." उन्होंने राजयोगिनी दादी जानकी जी और दादी हृदय मोहिनी जी के स्नेह और मार्गदर्शन को अपने जीवन की विशेष स्मृति बताया.
आचरण ही सबसे बड़ा धर्म
अपने संबोधन में, प्रधानमंत्री ने भारतीय शास्त्रों का जिक्र करते हुए कहा, "आचारः परमो धर्म... अर्थात्, आचरण ही सबसे बड़ा धर्म है." उन्होंने कहा कि ब्रह्मकुमारीज संस्था की आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत यही है कि वे अपने कथन को आचरण में उतारते हैं. उन्होंने कहा कि संस्था का "ॐ शांति" का संबोधन ही ब्रह्म और ब्रह्मांड में शांति की कामना का प्रतीक है.
वैश्विक शांति में भारत की भूमिका
प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्व शांति की अवधारणा भारत के मौलिक विचार का हिस्सा है. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत आज वैश्विक संकटों में "फर्स्ट रिस्पॉन्डर" के तौर पर एक भरोसेमंद साथी बनकर उभर रहा है.
उन्होंने कहा, "आज पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों के बीच भारत पूरे विश्व में प्रकृति संरक्षण की प्रमुख आवाज बना हुआ है." उन्होंने 'मिशन LiFE' और 'One Earth, One Family, One Future' जैसे भारतीय पहलों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत भविष्य के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहा है. उन्होंने विश्वास जताया कि शांति शिखर जैसे संस्थान भारत के इन वैश्विक प्रयासों को नई ऊर्जा देंगे.