Bastar News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) का बस्तर (Bastar) अपने प्राकृतिक सौंदर्य (natural beauty) के साथ साथ बस्तर में तीज त्यौहारो में निभाये जाने वाले अपनी अनूठी परंपराओ ,रीति रिवाज के लिए पूरे देश में जाना जाता है, और इनमें से एक अनूठी परम्परा है. बस्तर का रियासत कालीन होलिका दहन ,यहाँ होलिका दहन भक्त प्रहलाद से नहीं बल्कि देवी- देवताओं से जुड़ा है. 600 सालों से जारी है परंपराबस्तर के रियासत कालीन होली में दंतेवाड़ा की फागुन मंडई, माड़पाल गांव की होली और जगदलपुर का जोड़ा होलिका दहन आज भी पिछले 600 सालों से अनवरत जारी है, बस्तर की होली में भक्त प्रहलाद और होलिका की मान्यता कम हो जाती हैं. इनके स्थान पर कृष्ण के रूप में विष्णु नारायण और विष्णु के कलयुग के अवतार कल्कि के साथ देवी माता दंतेश्वरी, माता मावली और स्थानीय देवी देवताओं की पूजा अर्चना कर पुरानी परंपरा के साथ रंगों का पर्व होली मनाई जाती है.
बस्तर के राजकुमार ने किया होलिका दहनजगन्नाथ मंदिर के प्रधान पुजारी बनमालि प्रसाद पाणिग्रही के मुताबिक सबसे पहले दंतेवाड़ा में ऐतिहासिक रियासत कालीन 9 दिनों तक चलने वाले आखेट नवरात्रि पूजा विधान के साथ फागुन मंडई में पूजा की जाती है, यहां बस्तर संभाग में पहली होलिका दहन की जाती है. जिसके बाद दूसरी होली जगदलपुर शहर से लगे माड़पाल गांव में जलती है, बस्तर के महाराजा पुरुषोत्तम देव भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे. साल 1408 ई में महाराजा पुरुषोत्तम देव भगवान जगन्नाथ के सेवक के रूप में रथपति की उपाधि का सौभाग्य प्राप्त कर लौटते वक्त होली की रात माड़पाल गांव पहुंचे और वहीं रुके थे और उन्होंने होलिका दहन भी किया, तब से यह परंपरा लगातार चल रही है. आज भी माड़पाल के होलिका दहन में राज परिवार के सदस्य भाग लेते हैं. बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव सैकड़ो ग्रामीणों के मौजूदगी में होलिका दहन करते है, इसके बाद तीसरी होली जगदलपुर शहर के सीरासार चौक मावली माता मंदिर परिसर में जलती है.
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