Raigarh News: देश की आजादी में कंधे से कंधा मिलाकर गांधी जी के साथ आजादी का जंग लड़ने वाले हरियाणा के रेवाड़ी जिला निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को तो केंद्र सरकार की ओर से मान-सम्मान और पेंशन की सुविधा मिलती थी. परंतु स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की निधन के बाद उसके परिवार की माली स्थिति आज इस कदर खराब हो चुकी है कि उसका पोता आज रायगढ़ के फुटपाथ में जूते-चप्पल बेचकर जिंदगी गुजार रहा है. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परसादी लाल अग्रवाल के पोता की माने तो देश के जंगे आजादी में अपनी पूरी जिंदगी निछावर करने वाले उसके दादा परसादी लाल अग्रवाल को सरकार की ओर से आज तक शिवाय पेंशन के कोई मदद नहीं मिली. परंतु आजादी के बाद रायगढ़ में आकर बसने वाले उसके परिवार को भी सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली. ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने जीवन यापन के लिए प्रशासन से मदद की गुहार नहीं लगाई. कई बार जिला प्रशासन से मदद की गुहार लगाने के बाद भी कोई नतीजा निकला तो जंगे आजादी के सिपाही के पोते ने नगर निगम से एक दुकान के लिए भी कई सालों तक प्रयास किया. परंतु नगर निगम से भी एक दुकान तक नसीब नहीं हुआ. इसके कारण फ्रीडम फाइटर के पोते ने एक छोटे से कच्चे मकान में रहकर सड़क किनारे जूते-चप्पल और छतरी का दुकान लगा कर गुजारा करना शुरू कर दिया.


गौरतलब है कि 1945-46 में राष्ट्रपिता गांधी जी के असहयोग आंदोलन में अपनी अहम योगदान देने वाले हरियाणा रिवानी जिला के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परसादी लाल अग्रवाल के परिवार की बद से बदतर गुजर रही है. जिसका पोता बजरंग अग्रवाल पिता स्वर्गीय रामकिशन अग्रवाल हाल मुकाम बांगला पारा चक्रधर नगर निवासी को सड़क किनारे जूते-चप्पल बेचकर जीवन निर्वाह करना पड़ रहा है. हालत यह है कि अपने तीन मासूम भतीजा और उसकी भाभी की जिम्मेदारी भी उसी के ऊपर है. जबकि उसके दादा परसादी लाल अग्रवाल के गुजरने के बाद उसके पिता रामकिशन अग्रवाल को केंद्र सरकार की ओर से महज 6 से 700 रुपए पेंशन में मिलता था. पिता के गुजरने के बाद मां को 1000 पेंशन मिलता था और मां की गुजरने के बाद वह पेंशन भी बंद हो गया. ऐसे में जिंदगी दुश्वार हो गई और मजबूरन पढ़े लिखे होने के बावजूद कमला नेहरू गार्डन के पास सड़क किनारे जूते-चप्पल बेचकर अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं.


गोवा मुक्ति आंदोलन में कूद पड़े थे दादा परसादी लाल
पोता बजरंग अग्रवाल के अनुसार जब देश आजाद हो गया और गोवा गुलाम था. उस दौरान भी उसके दादा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परसादी लाल गांधी जी के साथ गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल हो गए और देश के इस आंदोलन में भी अपने पांव पीछे नहीं खींचे. कठिन परिस्थितियों में गोवा को आजादी मिली और उसके बाद कुछ सालों बाद उसके दादा का स्वर्गवास हो गया. इसके कारण उनके परिवार 1952 के आसपास रायगढ़ में आकर बस गए.


सेनानी राम कुमार के यहां करते थे मुंशी की नौकरी
इस मामले में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परसादी लाल अग्रवाल के पोते बजरंग अग्रवाल बताते हैं कि जब उसके माता-पिता रायगढ़ आ गए. तब रायगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दयाराम ठेठवार, रामकुमार अग्रवाल और ब्रिज भूषण शर्मा सहित जितने भी जंगे आजादी के सिपाही थे. उनके सानिध्य में उनके पिता रहते थे और रामकुमार अग्रवाल उस समय एमएलए हुआ करते थे. जहां उसके पिता रामकिशन अग्रवाल मुंशी की नौकरी करते थे.


दुखी जिंदगी गुजार रहा जंगे आजादी के पोते का परिवार
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय परसादी लाल अग्रवाल के पोते बजरंग अग्रवाल की माने तो उसके दादाजी के निधन के बाद उसका पूरा परिवार माता-पिता 1951-52 के आसपास रायगढ़ आ गए. उस समय हिंदू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे. यहां पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पोते बजरंग अग्रवाल जन्म हुआ और जब बचपन में उसके पिता किशन लाल अग्रवाल अपने पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परसादी लाल अग्रवाल का जंगे आजादी की कहानियां सुनते थे. तो पोता बजरंग अग्रवाल का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था और देश के लिए मर मिटने का जज्बा भर जाता था. परंतु वक्त और हालात ने सड़क किनारे जूते-चप्पल बेचने के लिए फेंक दिया. ऐसे में एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पोते के चेहरे पर आज निराश और परिवार के जिम्मेदारियां का बोझ नजर आ रहा है. जो दुखी है निराश है और अपनी तकलीफों को बताने के लिए भी हिचकिचाते चाहते हैं.


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