Happy Holi 2024: देशभर में होली का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. लोग रंग, गुलाल से जमकर होली खेल रहे हैं. लेकिन छत्तीसगढ के दंतेवाड़ा में वर्षों पुरानी अनोखी परंपरा का आज भी पालन होता है. शक्तिपीठ मां दंतेश्वरी मंदिर में राख से होली खेली जाती है. 700 साल पुरानी परंपरा हर्षोल्लास से निभाई जाती है. दंतेश्वरी माता मंदिर के परिसर में राख से होली खेलते हैं.


देवी देवताओं को भी राख की होली चढ़ाई जाती है. पर्व की पूर्व संध्या पर ताड़ के पत्तों से होलिका दहन की जाती है. सुबह ताड़ के पत्तों की राख से पुजारी और ग्रामीण होली खेलते हैं. पलाश के फूलों से बनी गुलाल भी देवी देवताओं को चढ़ाई जाती है.


छत्तीसगढ़ के इस जिले की वर्षों पुरानी है परंपरा


खास बात है कि दंतेवाड़ा जिले के दंतेश्वरी शक्तिपीठ में दो नहीं बल्कि 3 नवरात्रि मनाई जाती है. तीसरा नवरात्र फागुन मंडई के नाम से जाना जाता है. होली पर्व से ठीक 10 दिन पहले दंतेवाड़ा जिले में फागुन मंडई मेले शुरू हो जाता है. साल में एक बार लगने वाले मेले की लोगों को शिद्दत से इंतजार रहता है.


फागुन मंडई मेले में बस्तर संभाग के अलावा पड़ोसी राज्य उड़ीसा, तेलांगना और महाराष्ट्र से हजारों देवी-देवताओं का क्षत्र और डोली दंतेश्वरी मंदिर पहुंचती है. 10 दिनों तक पूजा अर्चना कर अनोखी रस्में निभाई जाती हैं. फागुन मंडई में होली का दिन सबसे खास होता है.  




आम तौर पर लकड़ियों और गोबर के बने कंडों से होली जलाने की प्रथा है, लेकिन दंतेवाड़ा में केवल ताड़ के पत्तों की होली जलाई जाती है. अगले दिन राख इकट्ठा कर दंतेश्वरी देवी के सामने रखकर होली खेली जाती है. कहा जाता है कि ताड़ के पत्ते की राख से फागुन मंडई मेले में पहुंचने वाले सभी देवी देवता और पुजारी होली खेलते हैं. राख के अलावा ग्रामीण होली खेलने में पलाश फूल से तैयार गुलाल का भी इस्तेमाल करते हैं. एक हजार देवी देवताओं की होली खेले जाने की परंपरा 700 सालों से निभाई जा रही है. अनोखी परंपरा केवल दंतेवाड़ा में ही देखने को मिलती है. 




पलाश के फूल और राख से खेली जाती है होली


दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी ने बताया कि 10 दिनों तक चलने वाले फागुन मंडई मेले में पलाश के फूलों और होलिका दहन की राख से होली खेलने की परंपरा है. सबसे पहले मां दंतेश्वरी की डोली से पलाश के फूलों को उतारकर भैरव बाबा को सजाया जाता है. दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण में भैरव बाबा के साथ होली खेलते हुए लोग शनि मंदिर पहुंचते हैं. होलिका दहन वाली जगह पर पहुंच कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है.


सेवादार होलिका दहन की राख को आम जनता में बांटते हैं. फागुन मड़ई की रियासत कालीन परंपराओं का निर्वहन करते हुए मां दंतेश्वरी के दरबार में पलाश के फूल से बनी गुलाल और राख का इस्तेमाल होली खेलने में किया जाता है. 


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