Chhattisgarh Korea Holi: रंगों के त्योहार होली (Holi) के मौके पर शहरी इलाकों में लोग अपने मनोरंजन और उत्साह के लिए कई तरह के आयोजन करते है, जिसमें भारी भरकम राशि भी खर्च होती है. वहीं दूसरी ओर ग्रामीण अंचलों में आज भी ऐसी परंपराएं जीवित हैं, जिनके माध्यम से ग्रामीण अपना मनोरंजन करते हैं. ऐसे आयोजनों में ना बड़ा तामझाम होता है, और ना ज्यादा खर्च होता है. अगर कुछ होता है तो लोगों का उत्साह, उमंग और मस्ती का वो मंजर जिसमें ग्रामीण अपनी सुध-बुध भूलकर उत्साह में सराबोर दिखाई देते हैं. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कोरिया (Korea) जिले में भी कुछ ऐसा ही अनूठा आयोजन होता है, जिसकी चर्चा पूरे प्रदेश भर में है. 


होली के 2 दिन बाद होता है आयोजन
दरअसल, कोरिया जिला मुख्यालय बैकुंठपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूरी पर बसे ग्राम बैरागी की पहचान होली के 2 दिन बाद होने वाले एक विशेष आयोजन से पूरे प्रदेश में बनी हुई है. यहां आयोजित होने वाली अनूठी प्रतियोगिता ना केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे भारतवर्ष में अपनी तरह की एकमात्र ऐसी प्रतियोगिता है, जिसमें पानी के अंदर केकड़ा दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. वहीं, खुले में जंगली मुर्गा, गिलहरी की रोमांचक दौड़ होती है. जिसे देखने आसपास के कई गांव के लोग काफी संख्या में एकत्रित होते हैं. वहीं आयोजन समिति की तरफ से इस प्रतियोगिता को देखने वाले दर्शकों से ना तो कोई शुल्क लिया जाता है, और ना ही किसी प्रकार का सहयोग लिया जाता है.




केकड़ा, गिलहरी, मुर्गा दौड़ की अनूठी परंपरा
आपने अलग-अलग तरह की दौड़ और कई प्रकार की प्रतियोगिताओं के बारे में सुना होगा, लेकिन कभी ये नहीं सुना होगा कि, नदी में रहने वाला केकड़ा, जंगल में रहने वाली गिलहरी और जंगली मुर्गा की भी दौड़ होती है, लेकिन ये अजीबोगरीब प्रतियोगिता कोरिया जिले के सुदूर वनांचल क्षेत्र स्थित ग्राम बैरागी में बीते कई दशकों से होती आ रही है. यहां ग्रामीण पूरे उत्साह से इस प्रतियोगिता में भाग लेते हैं. खुले आसमान में होने वाली इस प्रतियोगिता में रोमांच इस कदर हावी रहता है कि, जो भी एक बार इस प्रतियोगिता में शामिल होता है वो अगले वर्ष जरूर इस प्रतियोगिता को देखने आता है. 




पुरुष जंगल और महिलाएं नदी की ओर करती हैं रुख
ग्राम बैरागी में बीते कई दशकों से होने वाली इस अनूठी प्रतियोगिता को देखने के लिए लोगों के उत्साह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, होली के बाद इस प्रतियोगिता की तैयारी में पूरे गांव के लोग 2 समूहों में बंटकर जंगल और नदी की ओर चल देते हैं. इनमें से एक समूह पुरुषों का होता है, जिसमें बच्चें भी शामिल होते हैं. वहीं दूसरे समूह में महिलाएं और युवतियां शामिल होती हैं. पुरुष जंगल में जाकर जंगली मुर्गा, गिलहरी ढूढ़ते हैं और महिलाएं नदियों में जाकर केकड़ा और मछली पकड़ती हैं, और फिर दूसरे दिन मुकाबले की तैयारी शुरू होती है.




मुर्गा और गिलहरी पकड़ने के पीछे की मान्यता
इस प्रतियोगिता की शुरुआत में ग्रामीण तयशुदा स्थान पर एक बड़ा घेरा बनाते हैं. इस घेरे में गांव के पुरुष और खिलाड़ी महिलाएं शामिल होती हैं. सिटी बजने के साथ ही गांव के पुरूष वर्ग के लोग हाथ में पकड़कर रखे मुर्गा और गिलहरी को एक साथ छोड़ते हैं. इन्हें पकड़ने के लिए महिलाओं का समूह इनके पीछे जंगल की ओर भागता है. इस खेल के पीछे मान्यता है कि, अगर महिलाएं पुरुषों द्वारा छोड़े गए मुर्गा और गिलहरी को पकड़ लेती हैं, तो गांव में वर्ष भर अकाल नहीं पड़ेगा. वहीं अगर महिलाएं पकड़ने में सफल नहीं हुई, तो उन्हें अर्थदंड भी लगाया जाता है, जिससे मिलने वाले राशि का सामूहिक भोज में उपयोग किया जाता है. 




कृत्रिम तालाब में छोड़ा जाता मछ्ली और केकड़ा
महिलाओं के बाद पुरुषों और बच्चों के लिए प्रतियोगिता शुरू होती है. जिसमें गांव के लोगों द्वारा पॉलीथीन लगाकर एक छोटा तालाब बनाया जाता है. गांव की महिलाएं जो नदियों से मछली और केकड़ा पकड़कर लाती हैं, उसे छोड़ा जाता है. इस प्रतियोगिता में निर्णायक द्वारा सीटी बजाने के साथ ही पुरुषों को इस तालाब से मछलियां और केकड़ा पकड़ना होता है. जो पुरूष सबसे अधिक केकड़ा और मछली पकड़ता है, उसे विजयी घोषित किया जाता है. इसी कड़ी में ग्रामीणों के बीच रोमांचकारी केकड़ा दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. महिलाओं द्वारा पकड़े गए केकड़ों को खुले मैदान में छोड़ा जाता है. सबसे तेज दौड़ने वाले केकड़ें को विजेता के खिताब से सम्मानित किया जाता है.




सामूहिक भोज का आयोजन
इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ियों और ग्रामीणों के लिए बैरागी गांव के लोगों द्वारा रात में सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है. जिसमें सभी तबके के लोग उत्साहपूर्ण वातावरण में शामिल होते है. इस परंपरा को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि, बीते कई दशकों से गांव में ये अनूठी प्रतियोगिता आयोजित होती है. इसमें उनका एक रुपया भी खर्च नही होता. गांव के लोग अपनी तरफ से पूरी व्यवस्था करते हैं.




परंपरा को लेकर क्या कहते हैं लोग 
समाजसेवी रंजीत सिंह ने बताया कि, गांव वालों की जानकारी के अनुसार, ये परंपरा है इनके गांव की है. होली के बाद सारा गांव एक जगह इकट्ठा होगा. केकड़ा दौड़, मछली दौड़, मुर्गा दौड़, गिलहरी दौड़ और खरगोश दौड़ का आयोजन होता है. इस प्रतियोगिता के बाद जो जीतता है उसे विजेता-उप विजेता का खिताब मिलता है. सारा गांव बैठकर भोजन करता है. सामूहिक रूप से रंग-गुलाल खेलते हैं, फाग गीत गाते हैं, इसके बाद लोग अपने-अपने घर जाते हैं. यहां के बड़े बुजुर्गों के हिसाब से जमाने से, जब से यह गांव बसा है तब से ये परंपरा चल रही है.


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