Raipur News: छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े विश्वविद्यालय पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में बुधवार को 26 वां दीक्षांत समारोह आयोजित की गई. लेकिन इस दीक्षांत समारोह में यूनिवर्सिटी ने एक ऐसी बच्ची को पीएचडी दी है. जो जन्म से नेत्रहीन है. आंखों की रोशनी न होने के बावजूद रायपुर की देवश्री ने कड़ी तपस्या कर पीएचडी हासिल की है. जितनी मेहनत देवश्री ने किया उससे कहीं ज्यादा देवश्री के मजदूर पिता ने किया है. चलिए देवश्री की पूरी कहानी आपको बताते है.

 

दीक्षांत समारोह में नेत्रहीन को मिला पीएचडी
दरअसल रायपुर में बुधवार को राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उपस्थिति में पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह हुआ. इसमें राज्य गौसेवा आयोग के अध्यक्ष महंत रामसुंदर दास को संस्कृत विषय में डी. लिट की उपाधि प्रदान की है. इसके साथ दीक्षांत समारोह में 127 विद्यार्थियों को 272 गोल्ड मेडल, 294 विद्यार्थियों को पीएच.डी., 1 लाख 17 हजार 31 विद्यार्थियों को ग्रेजुएट और 44 हजार 704 विद्यार्थियों को पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री दी गई है. 

 

देवश्री ने अटल बिहारी वाजपेई पर किया PhD 
यूनिवर्सिटी में जिन लोगों को पीएचडी हासिल किया इनमे एक नाम देवश्री भोयर का भी शामिल है. देवश्री की पीएचडी लिखने में उनके पिता ने रात रात भर जागकर पीएचडी के लिए थीसिस लिखी है. आपको बता दें की देवश्री के पिता दिनभर रोजी मजदूरी करते थे. इसके बाद जब घर आते थे तो देवश्री की पीएचडी लिखने में मदद करते थे. देवश्री भोयर ने बताया कि मेरे प्रेरणा स्रोत अटल बिहारी वाजपेई है. मुझे अच्छा लगता है कि वह किसी पार्टी को नहीं देखते थे. एक प्रतिभावान व्यक्तित्व के धनी थे. किसी पार्टी विशेष को महत्व नहीं देते थे. वे सब की मदद करते थे, जो देश हित में जरूरी था, वही करते थे.

 


 

5 वीं क्लास के बाद आम बच्चों के साथ की देवश्री ने पढ़ाई
देवश्री ने बचपन में 5 वीं क्लास तक ब्लाइंड स्कूल में पढ़ाई की है. इसके बाद स्कूल से कॉलेज की पढ़ाई सामान्य स्कूल में आम बच्चों की तरह पढ़ाई पूरी की है. आपको बता दें कि देवश्री ने आर्ट्स सब्जेक्ट में ग्रेजुएशन किया है और पोस्ट ग्रेजुएशन दुर्गा कॉलेज से किया है. देवश्री के परिवार में उनके माता पिता और उनका एक भाई है. देवश्री नेत्रहीन होने के बावजूद सामान्य बच्चों को कॉलेज में पढ़ाती है. धमधा के सरकारी कॉलेज में देवश्री टीचर की नौकरी कर रही है.

 

पिता रोजाना साइकिल में देवश्री को कॉलेज छोड़ने जाते थे
देवश्री के पिता गोपीचंद भोयर कहते है कि जन्म से दृष्टिहीन होने के बाद भी हमने सोचा कि देवश्री को पढ़ाएंगे. स्कूली पढ़ाई देवश्री ने होस्टल में रहकर पढ़ाई की है. लेकिन कॉलेज की पढ़ाई में आर्थिक स्थिति ठीक नहीं था, इस लिए रोजाना कॉलेज आने जाने के लिए ऑटो के पैसे नहीं होते थे तो रोजना बेटी को कॉलेज साइकिल में छोड़ने जाते थे. बारिश हो या ठंड.. हमने देवश्री की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी है. समय रहते कॉलेज पहुंचाता था.