Bastar News: नक्सलगढ़ कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ ( Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar)में कभी सलवा जुडूम (Salwa Judum) के नेता मधुकर राव (Madhukar Rao)का नक्सलियों (Naxalites) के बीच इतना खौफ था कि बड़े-बड़े नक्सली नेता छत्तीसगढ़ छोड़कर तेलंगाना भाग जाया करते थे. उन्होंने अपनी बहादुरी और सूझ-बूझ के दम पर गांवों में नक्सलियों की दहशत को खत्म कर दिया था. नक्सलियों के दांत खट्टे करने वाले मधुकर की मंगलवार को 55 वर्ष की उम्र में हार्ट अटैक से मौत हो गई.



दरअसल, कुछ दिनों से उनकी तबीयत खराब चल रही है. तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें बीजापुर जिले के कुटरू से तेलंगाना के वारंगल ले जाया गया. जहां एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. इस बीच मंगलवार को देर शाम उनकी मौत हो गई. सलवा जुडूम के नेता मधुकर राव का अंतिम संस्कार बुधवार को उनके पैतृक गांव कुटरू में किया जाएगा. 


सलवा जुडूम के बड़े नेता थे मधुकर

सलवा जुडूम के जनक कांग्रेस नेता स्वर्गीय महेंद्र कर्मा के बाद मधुकर राव ही एक ऐसे शख्स थे, जिन्होंने सलवा जुडूम अभियान का हिस्सा बनकर इसकी अगुवाई की थी. नक्सलियों में जहां उनका खौफ था. वहीं, नक्सली उनके खून के भी प्यासे थे. बताया जाता है कि मधुकर राव एक बार करीब 300 नक्सलियों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था, लेकिन इसकी भनक लगते ही मधुकर राव उन्हें चकमा देकर बच निकले थे. 




शिक्षक पद से इस्तीफा देकर सलवा जुडूम से जुड़े

सन 2005-2006  में नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम की शुरुआत हुई थी. इस सलवा जुडूम के जनक कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा को बताया जाता है. इस समय नक्सलियों का आतंक इस कदर था कि आए दिन नक्सली कहीं न कहीं बड़ी घटना को अंजाम दे देते थे. नक्सलियों के इसी दहशत को खत्म करने और नक्सलवाद को जड़ से मिटाने के लिए सलवा जुडूम की शुरुआत की गई थी. इस सलवा जुडूम की अगुवाई का दायित्व महेंद्र कर्मा ने मधुकर राव को सौंपी थी. बीजापुर के कुटरू के रहने वाले मधुकर राव एक शिक्षक थे, जिन्होंने शिक्षक पद से इस्तीफा देकर बीजापुर के कुटरु के अंबेली से सलवा जुडूम अभियान का हिस्सा बनकर इसकी शुरुआत की थी. उसके बाद सलवा जुडूम के बंद होने तक उन्होंने गांव-गांव में नक्सलियों के लूटपाट, ग्रामीणों पर अत्याचार और ऐसे कई वारदातों को बंद कराया, जिसमें नक्सली खून की होली खेलते थे.


अनाथ बच्चों के लिए चलाते थे पंचशील आश्रम

नक्सलियों को मधुकर राव से इतना खौफ था कि कई बड़े नक्सली लीडर छत्तीसगढ़ छोड़ तेलंगाना चले गए थे. हालांकि, मधुकर राव हमेशा से ही नक्सलियों के टारगेट पर रहते थे. कई बार नक्सलियों ने उन्हें मारने की कोशिश भी की, लेकिन हर बार मधुकर राव  बच निकले. 2008 में सलवा जुडूम खत्म होने के बाद नक्सली कई बार उन्हें जान से मारने की कोशिश की, लेकिन हर बार मधुकरराव बच निकले. बताया जाता है कि उन दिनों  मधुकर अपने घर में नहीं रहकर  थाना में सोया करते थे. सलवा जुडूम बंद होने के बाद मधुकर राव ने पंचशील आश्रम का संचालन शुरू किया. इस आश्रम में नक्सल पीड़ित परिवारों के बच्चे और अनाथ बच्चे रहते हैं.


समाज के लिए जीवन किया समर्पित

मधुकर राव ने शादी नहीं की थी. वह अपने आश्रम के बच्चों और नक्सल पीड़ित परिवारों के सेवा में अपना समय बिताते थे. धीरे-धीरे उनके आश्रम को सरकारी मदद भी मिलने लगी पंचशील आश्रम बीजापुर में एक नामी आश्रम के रूप में जाना जाने लगा. हालांकि, तब भी मधुकरराव नक्सलियों के टारगेट में थे. इसलिए उन्हें Y श्रेणी की सुरक्षा भी दी गई थी. मधुकर राव किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़े थे और एक समाज सेवक के रूप में काम कर रहे थे. उनकी मौत से परिवार वालों के साथ ही पूरे बीजापुर और बस्तर में भी शोक व्याप्त है.


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