बिहार के सीतामढ़ी में HIV के मामलों को लेकर असिस्टेंट सिविल सर्जन और नोडल अफसर जे जावेद ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने इस दावे का खंडन किया है कि सीतामढ़ी में एचआईवी को लेकर बहुत भयानक स्थिति है. उन्होंने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है. कुछ मरीज ऐसे हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है. कुछ मरीज ऐसे भी हैं जो बाहर चले गए हैं. ऐसे मरीजों की संख्या 214 है. 6707 इलाजरत मरीजों में पुरुष 3544, महिला 2733 हैं, टीनएजर 2 हैं जबकि 15 साल से कम उम्र के 428 मरीज हैं.

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एचआईवी नोडल अफसर ने कहा, ''सीतामढ़ी में HIV के 6707 मरीज इलाजरत हैं. ये 1 दिसंबर 2012 से दिसंबर 2025 तक का डेटा है. अगल-बगल के जिलों जैसे मुजफ्फरपुर और मोतिहारी में सीतामढ़ी से ज्यादा HIV के मरीज हैं. सीतामढ़ी में 428 बच्चे HIV से संक्रमित हैं." 

बच्चों में कैसे फैला संक्रमण?

इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "ये वो बच्चे हैं जिनके माता-पिता संक्रमित हैं. हमारे पास कोई ऐसा डाटा नहीं है जिसमें पता चले कि माता-पिता संक्रमित नहीं हैं और 15 साल से कम बच्चे को संक्रमण हो गया हो."

'HIV को लेकर समाज में भेदभाव' 

उन्होंने आगे कहा, ''HIV को लेकर समाज में भेदभाव होता है. HIV लाइलाज बीमारी है लेकिन मरीज अगर लगातार दवा लेता रहे तो उसकी इम्यूनिटी घटती नहीं है. समाज में HIV को लेकर बिल्कुल जागरुकता नहीं है. जागरुकता फैलाने की जरूरत है, मीडिया इसका बड़ा माध्यम है. साथ रहने, साथ खाने-पीने, हाथ मिलाने, गले मिलने और बातचीत करने से नहीं फैलता है. एक साथ चाय पीने से HIV का संक्रमण नहीं होता है. ये हैजा की तरह फैलने वाली बीमारी नहीं है. अगर कोई HIV का मरीज है तो उसके साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए.''

असुरक्षित यौन संबंध न बनाने की अपील

जे जावेद ने लोगों से अपील करते हुए कहा, ''असुरक्षित यौन संबंध न बनाएं. अपने साथी और अपने बच्चों के प्रति ईमानदार रहें. अगर HIV पॉजिटिव हो जाते हैं तो रेगुलर दवा खाएं. दवा मुफ्त में मिलती है. 15 साल के ऊपर के मरीजों के लिए 2000 रुपये प्रति माह देने का प्रावधान है.15 साल से नीचे की उम्र के बच्चों के लिए 1000 रुपये प्रति महीना 'परवरिश योजना' के तहत दी जाती है.

बॉम्बे को मैं एड्स सिटी ही मानता हूं- जे जावेद

HIV नोडल अधिकारी ने कहा कि अगर मरीज सही तरीके से दवा न लें तो उनकी इम्यूनिटी पावर घटती चली जाती है. इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है. उन्होंने ये भी कहा, "बॉम्बे को मैं एड्स सिटी ही मानता हूं. बॉम्बे ऐसी जगह है जहां से जो भी प्रवासी मजदूर आते हैं, उसमें 100 में 40 पॉजिटिव ही आते हैं."