बिहार विधानसभा 2025 चुनाव के बाद से लालू यादव के परिवार में फूट पड़ गई. संजय यादव का नाम चर्चा के केंद्र में हैं. लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने परिवार और पार्टी छोड़ते समय संजय यादव का ही नाम लिया था. बिहार के सियासी गलियारों में संजय यादव का नाम पहली बार उस वक़्त सुना गया जब 2015 के राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने 'आरक्षण की समीक्षा' वाला बयान दिया था. कहा जाता है कि भागवत का बयान एक मौका था और संजय यादव की सलाह पर ही लालू प्रसाद ने इसके खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया था और इससे बीजेपी को बिहार में करारी शिकस्त मिली थी.

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कौन हैं संजय यादव?

  • संजय यादव हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के नांगल सिरोही गांव से ताल्लुक रखते हैं.
  • बिहार से आरजेडी के राज्यसभा सांसद हैं.
  • वे पहली बार राज्यसभा सांसद हैं और अप्रैल 2024 में चुने गए हैं.
  • तेजस्वी यादव के सबसे भरोसेमंद रणनीतिकारों में गिने जाते हैं.
  • उन्होंने कंप्यूटर साइंस में एमएससी किया है.
  • राजनीति में आने से पहले वे एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे.
  • तेजस्वी से जुड़ने के बाद उनकी भूमिका पूरी तरह राजनीतिक रणनीति के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गई.
  • हरियाणवी लहजे वाले संजय की पकड़ बिहार की राजनीति में आज किसी वरिष्ठ नेता से कम नहीं है.
  • 2024 में आरजेडी ने उन्हें राज्यसभा भी भेजा, जिससे यह साफ हो गया कि उनकी हैसियत संगठन के शीर्ष स्तर पर है.
  • साल 2015 में बिहार में पहली बार महागठबंधन की सरकार बनी थी तब भी संजय यादव तेजस्वी के साथ थे और साल 2025 के राज्य विधानसभा चुनावों से अब तक वो लगातार आरजेडी के प्रमुख रणनीतिकारों में हैं.

आरजेडी में संजय का क्या कद है?

  • जैसे महाभारत का संजय अपनी आंखों से देखकर धृतराष्ट्र को बताता था, वैसे ही आजकल तेजस्वी यादव ख़ुद नहीं बल्कि संजय यादव की नज़र से देखते हैं.
  • आरजेडी में संजय यादव का कद अब सिर्फ एक रणनीतिकार का नहीं, बल्कि शीर्ष नेतृत्व का माना जाता है.
  • 2024 में राज्यसभा भेजे जाने के बाद उनकी स्थिति और मजबूत हो गई, जो तेजस्वी द्वारा उन्हें दिए गए महत्व को दर्शाता है.
  • आरजेडी की युवा कोर टीम, सोशल मीडिया सेल, चुनाव प्रबंधन और संसदीय रणनीतियों में संजय की भूमिका अधिक है बेहद प्रभावशाली है.
  • उन्हें पर्दे के पीछे से पार्टी चलाने वाले सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जाता है.

तेजस्वी से कहां मुलाकात हुई?

संजय यादव और तेजस्वी यादव की पहली मुलाकात दिल्ली में हुई थी

अभिमन्यु यादव, बीजेपी दानापुर विधायक राम कृपाल यादव के बेटे भी तब दिल्ली में रह रहे थे

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अभिमन्यु यादव ने ही तेजस्वी की दोस्ती संजय यादव से बनाई थी

2013 में चारा घोटाला मामले में लालू के जेल जाने के बाद राबड़ी देवी अकेली हो गई थीं. उसके बाद उन्होंने तेजस्वी को दिल्ली से बिहार बुला लिया, लेकिन तेजस्वी को भी बिहार में मन नहीं लग रहा था. वो अपने मित्रों से दूर हो गए थे, तब उन्होंने अपने साथी संजय यादव को बिहार बुला लिया. यही अनौपचारिक रिश्ता समय के साथ मजबूत होता गया

2012 के बाद से तेजस्वी ने राजनीतिक मुद्दों पर संजय की राय लेनी शुरू की

धीरे-धीरे यह रिश्ता पेशेवर साझेदारी में बदल गया

तेजस्वी की जरूरतों और चुनावी रणनीति की समझ को देखते हुए संजय ने अपनी प्राइवेट नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह राजनीति में आ गए

दिल्ली में शुरू हुई यह दोस्ती आगे चलकर आरजेडी की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक साझेदारियों में से एक बन गई

लालू परिवार में फूट

लालू-राबड़ी के 9 बच्चे हैं. उनमें से 4 मीसा भारती, रोहिणी, तेजप्रताप और तेजस्वी बिहार की राजनीति में सक्रिय हैं. तेजस्वी यादव लालू के राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं. लालू यादव ने तेजस्वी यादव को फ्री हैंड दे दिया है, जब से तेजस्वी को पूरी पावर मिली है, उनके करीबी संजय यादव का प्रभाव भी बढ़ गया. तेजस्वी क्या करेंगे, किससे बात करेंगे, उनकी रणनीति क्या होगी सब संजय यादव तय करते हैं. आज दोनों की दोस्ती इतनी मजबूत है कि संजय, तेजस्वी के साये की तरह चलते हैं.

तेजस्वी यादव के बाद संजय यादव RJD में सबसे ताकतवर नेता माने जाते हैं. भाई-बहन सभी पार्टी में एक्टिव हो जाएंगे, तो संजय यादव की ताकत भी कम होगी. लालू परिवार के अंदर संजय यादव का विरोध पहली बार नहीं है. इसकी शुरुआत 2021 में ही हो गई थी, शुरुआत तेजप्रताप ने की, वे राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव से मिलने राबड़ी देवी के घर गए थे. बाहर निकलकर बोले कि संजय यादव ने मुझे तेजस्वी यादव से बात नहीं करने दी और उन्हें लेकर अंदर चले गए

तेजप्रताप को पार्टी से बाहर किया गया, तब रोहिणी चुप रही थीं, अब रोहिणी ने संजय यादव पर सवाल उठाया, तो रोहिणी का साथ देने तेजप्रताप सामने आ गए. लालू परिवार की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि परिवार के लोगों से ही नुकसान होता रहा है. लालू यादव ने दोनों साले साधु यादव और सुभाष यादव के साथ RJD को आगे बढ़ाया, वही दोनों लालू प्रसाद की सरकार जाने की वजह बने

फिर मीसा भारती आईं, उनकी वजह से लालू प्रसाद के करीबी रहे रामकृपाल यादव 2014 में पार्टी छोड़कर BJP में चले गए. तेजप्रताप यादव ने अपना रिश्ता सोशल मीडिया पर उजागर कर संकट में डाला, लालू प्रसाद को डैमेज कंट्रोल करने के लिए तेज प्रताप को पार्टी और परिवार से बाहर निकालना पड़ा. अब रोहिणी आचार्य अपने ही परिवार के लोगों पर सवाल उठा रही हैं, इससे RJD को नुकसान होगा. तेजस्वी यादव अपने घर के सदस्यों से तो घिर ही गए हैं

संजय यादव की पॉलिटिकल स्ट्रेटेजी

माना जाता है कि संजय यादव ने ही आरजेडी में मौजूदा समय के हिसाब से कई बदलाव कराए हैं. उन्होंने मुस्लिम-यादव समीकरण से बाहर अन्य वर्गों और बिहार के युवाओं को जोड़ने की रणनीति बनाई है. जिसकी वजह से MY फैक्टर तो बिगड़ ही गया बाकी नई कोशिश भी फ़ैल रही. संजय यादव पर एक बड़ा आरोप यह लगता है कि उन्होंने तेजस्वी को अपने नियंत्रण में ले लिया है और आरजेडी के पुराने लोग दरकिनार कर दिए गए हैं.

आरजेडी की नई रणनीति में नव समाजवाद है और अब पार्टी हर तबके के कमजोर लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रही है. उसने युवाओं की महत्वाकांक्षा को अपनी नीतियों में जगह देकर पार्टी के विस्तार की कोशिश की है. माना जाता है कि नए लोगों को जोड़ने की इस कोशिश में उसके पुराने लोग पीछे छूटते जा रहे हैं.

संजय यादव ने तेजस्वी को परिवार और पुराने सलाहकारों से दूर हटाया है. किससे कितनी बात करनी है, कहाँ किसकी तस्वीर और पोस्टर लगाने हैं, किसकी नहीं लगानी है, यह सब संजय यादव तय करते हैं. आरजेडी में सब कुछ उनके कंट्रोल में रहता है.