बिहार में चुनावी नतीजों में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की की बंपर जीत के बाद गठबंधन दलों रिश्तों में विश्वास की कमी साफ दिख रही है. बिहार की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ जब बंपर जीत के बाद जब सीएम राज्यपाल से मिले तो न सरकार को भंग करने की सिफारिश की और न अपना इस्तीफा सौंपा. बल्कि राज्यपाल को ये जानकारी दी गई कि 19 नवंबर को इस्तीफा सौंपा जाएगा.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 17 नवंबर, 2025 को राज्यपाल आरिफ मोहम्मद आरिफ खान से मुलाकात के बाद इस्तीफा नहीं सौंपा. अपने आप में यह ऐसा अनोखा मामला है कि राज्य सरकार की आखिरी कैबिनेट बैठक हो, उसमें मंत्रीमंडल को भंग करने का प्रस्ताव पारित हो, मुख्यमंत्री, राज्यपाल से राजभवन में मुलाकात करें लेकिन इस्तीफा न दें! केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक में यह पंरपरा रही है कि चुनाव के नतीजे आने के बाद कैबिनेट की आखिरी बैठक के बाद प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास जाते हैं. वह लोकसभा या विधानसभा को भंग करने की सिफारिश करते हैं.
हालांकि बिहार में 17 नवंबर 2025 को यह परंपरा टूट गई. सीएम, राज्यपाल से मिले तो लेकिन इस्तीफे के लिए नहीं बल्कि यह बताने के लिए कि 19 नवंबर से विधानसभा विघटित यानी भंग होगी और तब तक वह मुख्यमंत्री रहेंगे.
नीतीश कुमार ने क्यों उठाया ऐसा कदम?
अब यह सवाल उठ रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने ऐसा कदम क्यों उठाया? सूत्रों की मानें तो नीतीश के इस फैसले के पीछे वह डर छिपा हुआ है जिसकी चर्चा चुनाव शुरू होने से पहले ही बिहार के सियासी गलियारों में हो रही थी.
चुनाव से पहले ही राजनीतिक जानकार यह दावा कर रहे थे कि अगर भारतीय जनता पार्टी की सीटें ज्यादा आईं तो वह अपना मुख्यमंत्री चुनेगी. फिर जब टिकट का बंटवारा हुआ और बीजेपी के साथ-साथ जदयू 101 सीटों पर लड़ी तो नीतीश कुमार की पार्टी ने राज्य में बड़े भाई का दर्जा भी लगभग खो दिया. टिकट बंटवारे के बाद से ही इसकी चर्चा शुरू हो गई. उस वक्त यह खबरें भी आईं थी कि नीतीश कुमार टिकट बंटवारे से नाराज हैं और उन्होंने अपने करीबियों को फटकार भी लगाई है.
फिर आया 14 नवंबर का दिन. बिहार चुनाव के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि जदयू ने 2020 चुनाव के मुकाबले भले ही बड़ी कामयाबी हासिल कर 85 सीटें जीती हैं लेकिन 89 सीटें जीतकर बड़े भाई की भूमिका में बीजेपी ही आई.
नीतीश कुमार को किस बात का डर?
अब माना जा रहा है कि नीतीश कुमार को इस बात का डर है कि कहीं बीजेपी 19 नवंबर को होने वाली विधायक दल की बैठक में किसी और नेता के नाम पर मुहर लगाते हुए उन्हें साइड न कर दे. इसीलिए नीतीश कुमार ने 19 नवंबर तक इस्तीफे को टाल दिया है.
राजभवन से निकलने के बाद बिहार सरकार में मंत्री जदयू नेता विजय चौधरी का बयान भी आया. मंत्री विजय चौधरी ने कहा 'कैबिनेट ने विधानसभा भंग करने की अनुशंसा की है और 19 तारीख से विधानसभा भंग हो जाएगी.' इनके बयान का मतलब हुआ कि विधानसभा 19 नवंबर को भंग मानी जाएगी. उस दिन तक नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे और नियमित प्रशासनिक कार्य संभालते रहेंगे.
नीतीश के राज्यपाल से मुलाकात की तारीख 17 नवंबर और विधानसभा के भंग होने की तारीख 19 नवंबर. यानी नीतीश, बीजेपी को भी इतना मौका नहीं देना चाहते हैं कि वह अपने हिसाब से कोई खेल कर सके.