बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार सबसे ज्यादा चर्चा अगर किसी सीट की रही, तो वह थी परिहार विधानसभा सीट. यहां की राजनीति में पिछले कुछ सालों से एक नाम लगातार गूंजता रहा है, रितु जायसवाल. जिन्हें इलाके में लोग प्यार से ‘मुखिया दीदी’ भी कहते हैं. इस बार उन्होंने राजद से टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय मैदान में उतरकर माहौल ही बदल दिया.
राजद का बड़ा दांव उलटा पड़ा
रितु जायसवाल 2020 में राजद की उम्मीदवार थीं और बेहद करीबी मुकाबले में सिर्फ 1569 वोटों से चुनाव हारी थीं. तब उन्हें समर्थन देने वाले लोगों का मानना था कि इस बार टिकट देकर राजद उनकी मेहनत का फायदा उठाएगी. लेकिन टिकट नहीं मिला तो रितु जायसवाल ने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया. यहीं से परिहार की राजनीति में नई गर्मी आ गई और राजद का पूरा सोशल समीकरण बिगड़ता चला गया.
तीन तरफा मुकाबला, लेकिन बढ़त भाजपा की
इस बार परिहार सीट पर मुकाबला तीन तरफा हो गया. अंत में परिणाम कुछ इस तरह रहे-
जीतीं- गायत्री देवी (BJP)वोट: 82644बहुमत: +17189
दूसरे स्थान पर रहीं रितु जायसवाल (Independent)वोट: 65455
तीसरे स्थान पर रहीं स्मिता गुप्ता (RJD)वोट मिले 48534
स्पष्ट है कि रितु जायसवाल ने निर्दलीय होने के बावजूद 65 हजार से ज्यादा वोट बटोर कर पूरे चुनाव को दिलचस्प बना दिया. अगर वह राजद की तरफ से लड़ रहीं होतीं, तो समीकरण शायद बिल्कुल अलग होता.
रितु जायसवाल की पकड़ अभी भी मजबूत
रितु जायसवाल की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी संगठन के बिना सिर्फ अपनी छवि और कार्यशैली के दम पर उन्होंने भाजपा को कड़ी टक्कर दी और राजद के अधिकतर वोट अपने खाते में खींच लिए.
चुनाव प्रचार के दौरान वे तेजस्वी यादव और राजद संगठन पर खुलेआम नाराजगी जताती रहीं. उनका आरोप था कि टिकट बंटवारे में मेहनत की कीमत नहीं, राजनीति की चमक देखी गई.
राजद को सबसे बड़ा नुकसान
चुनाव परिणाम साफ बताते हैं कि रितु जायसवाल को टिकट न देकर राजद ने अपनी ही संभावनाओं को कमजोर कर दिया. राजद उम्मीदवार स्मिता गुप्ता तीसरे स्थान पर रहीं और 48 हजार वोटों पर ही सिमट गईं. वहीं रितु जायसवाल ने अकेले ही राजद का परंपरागत वोट बैंक काफी हद तक अपनी ओर खींच लिया.
गायत्री देवी की लगातार दूसरी जीत
भाजपा उम्मीदवार गायत्री देवी ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की है. 2020 में भी उन्होंने रितु जायसवाल को शिकस्त दी थी और इस बार उनका मुकाबला और भी चुनौतीपूर्ण था. लेकिन भाजपा के संगठन और वोट ट्रांसफर ने उनकी राह सरल बना दी.