बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है. मुंगेर में 'मतदाता अधिकार यात्रा' के दौरान कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी शुक्रवार (22 अगस्त) को मुस्लिम समुदाय की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था जामिया रहमानी पहुंचे. उनके साथ बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के अलावा अन्य नेता भी मौजूद थे. इसके सियासी मायने हैं. राहुल गांधी से पहले 1985 में राजीव गांधी भी यहां गए थे. ऐसे में इस तस्वीर की काफी चर्चा हो रही है.

Continues below advertisement

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने मुंगेर में जामिया रहमानी में जाकर अमीर ए शरीयत हजरत मौलाना अहमद वली फैजल रहमानी से मुलाकात की. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ''आज मुंगेर में खानकाह रहमानी के बुजुर्गों को श्रद्धांजलि अर्पित की और अमीर-ए-शरीअत हजरत मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी से मुलाकात की.'' 

खानकाह-ए-रहमानी का इतना महत्व क्यों?

बिहार के मुंगेर में स्थित खानकाह-ए-रहमानी बीते 125 साल से इस्लामी शिक्षा, तसवुफ (आध्यात्म), सियासत और समाजिक मुद्दों को लेकर काम कर रहा है. इसके संस्थापक- हजरत मौलाना मोहम्मद अली मुंगेरी थे. मौलाना मुंगेरी, लखनऊ के नदवतुल उलूम, नदवा के संस्थापकों में भी थे. ये संस्थान भारत में बड़े इस्लामी शिक्षा के केंद्रों में से एक है.

ये हनफी मुसलमान हैं, देवबंदी मसलक के करीब हैं. इन मुसलमानों का बिहार, झारखंड में खासा असर है, इसलिए इनका भी प्रभाव है.  दूसरी, ये खानकाही तरीके से इस्लाम का प्रचार प्रसार करते हैं, जो गुरुकुल जैसी व्यवस्था के करीब है. इस संस्था का बिहार की सामाजिक-राजनीतिक जमीन पर भी गहरी पकड़ है.

इस्लामी शिक्षा में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान

जामिया रहमानी ने इस्लामी शिक्षा में अहम भूमिका निभाई है और ऐसे स्नातक तैयार किए हैं जिन्हें ज्ञान और मानवता की सेवा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है. इस संस्थान ने न सिर्फ बिहार, बंगाल और उड़ीसा, बल्कि पूरे भारत में मदरसों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों और उनके पाठ्यक्रम के विकास में अहम रोल अदा किए.