Bihar Many Government Jobs: बिहार में चुनावी माहौल गरमाने के साथ ही रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है, जहां 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरियों का वादा कर राजनीति में हलचल मचा दी थी, वहीं इस बार नीतीश सरकार ने 19 लाख नौकरियों की बात कह कर यह संकेत दिया है कि रोजगार का यह मुद्दा अब और बड़ा हो चुका है.
 
इसी कड़ी में पटना में आयोजित नियुक्ति पत्र वितरण समारोह में 6837 अभ्यर्थियों को सरकारी नौकरी देकर सरकार ने अपनी प्रतिबद्धता का दावा पेश किया, लेकिन सवाल यह है कि क्या इन नौकरियों से बिहार के युवाओं की बेरोजगारी दूर हो सकेगी, या यह सिर्फ एक चुनावी रणनीति है?
 
सरकारी नौकरियों के दावे और हकीकत
 
बिहार सरकार के मुताबिक, 6341 कनीय अभियंताओं और 600 से अधिक अनुदेशकों को नियुक्ति पत्र सौंपे गए. डिप्टी सीएम विजय सिन्हा और मंत्री विजय चौधरी ने इसे सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया. उन्होंने दावा किया कि नीतीश सरकार के प्रयासों से वर्षों से रुकी नियुक्तियों को अब पूरा किया जा रहा है. विजय चौधरी ने कहा: “2019 में इन नौकरियों के लिए विज्ञापन निकला था, लेकिन कई गतिरोधों के कारण यह प्रक्रिया रुकी हुई थी. 7 वर्षों से लंबित इन भर्तियों को अब पूरा किया जा रहा है.”
 
इसके साथ ही विजय चौधरी ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में कहा, “अब तक भरोसा हो जाना चाहिए कि तेजस्वी अब बहुत जल्दी रोज़गार वाला मुद्दा बदल लेंगे, क्योंकि वो जितना रोज़गार का अपने नाम पर प्रचार करेंगे, उतना हमारा फ़ायदा होगा.” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार का लक्ष्य 10 लाख नौकरियां देने का था, जिसमें से 9 लाख से अधिक पूरी हो चुकी हैं. आज भी 7000 नियुक्ति पत्र वितरित किए गए. चुनाव से पहले सरकार 12 लाख नौकरियां पूरी कर देगी.
 
बिहार की राजनीति में रोजगार का मुद्दा तेजस्वी यादव के 10 लाख नौकरी वाले वादे से केंद्र में आया था. उस समय एनडीए ने इस वादे को अव्यावहारिक बताया था, लेकिन चुनाव के बाद नीतीश सरकार ने  केवल इसे अपनाया, बल्कि संख्या 19 लाख तक बढ़ा दी. डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने तेजस्वी पर तंज कसते हुए कहा, “तेजस्वी यादव अपने पिता के 15 साल के शासन काल की उपलब्धि के साथ चुनाव में जाएं. वे नीतीश कुमार की नौकरी देने की उपलब्धि को अपना बताकर चुनाव में क्यों जा रहे हैं?”
 
इस बयान से यह स्पष्ट है कि एनडीए सरकार रोजगार को अपना सबसे मजबूत चुनावी हथियार बना रही है और यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि राजद ने अपने कार्यकाल में नौकरियां नहीं दीं. क्या सरकारी नौकरी ही एकमात्र समाधान है? बिहार में बेरोजगारी दर देश में सबसे अधिक है. सरकारी नौकरियां इस समस्या का हल तो हैं, लेकिन वे कितनी पर्याप्त हैं? हर साल लाखों युवा रोजगार की तलाश में बिहार से बाहर जाते हैं.
 
आम चर्चाएं हैं कि सरकार को चाहिए कि निजी उद्योगों को बढ़ावा दे,ताकि नौकरियों के नए अवसर बनें. स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार के लिए स्कीमें लागू करे. नौकरी भर्ती की प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखे. बिहार में रोजगार चुनावी राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है. सरकारी नियुक्तियों का यह सिलसिला जहां लाखों युवाओं के लिए उम्मीद लेकर आया है.
 
बिहार में स्थायी रोजगार का कोई मजबूत मॉडल नहीं
 
वहीं यह सवाल भी उठाता है कि क्या यह सिर्फ चुनावी स्टंट है या बिहार में स्थायी रोजगार का कोई मजबूत मॉडल भी विकसित हो रहा है? अगर सरकार अपने दावों पर खरी उतरती है और निजी सेक्टर के विकास को भी प्राथमिकता देती है, तो आने वाले वर्षों में बिहार में बेरोजगारी की समस्या का स्थायी समाधान निकल सकता है, लेकिन अगर यह सिर्फ चुनावी वादों तक सीमित रहा, तो बिहार के युवाओं को एक बार फिर सिर्फ घोषणाओं से संतोष करना होगा.
 
अब फैसला जनता के हाथ में है. क्या बिहार के युवा सरकार की इन घोषणाओं पर भरोसा करेंगे, या चुनाव सिर्फ रोजगार के मुद्दे पर नहीं, बल्कि व्यापक राजनीतिक समीकरणों पर लड़ा जाएगा?

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