Pashupati Kumar Paras News: 2024 के लोकसभा चुनाव की घोषणा हो गई है और तारीखों का ऐलान भी हो गया है, लेकिन बिहार में सीट बंटवारा नहीं हुआ है. एनडीए और महागठबंधन दोनों शांत हैं कि पेंच को कैसे सुलझाया जाए. महागठबंधन में कांग्रेस की मांग अधिक है तो वहीं एनडीए में पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) नाराज चल रहे हैं. यहां चाचा-भतीजे में लड़ाई है. बीते दिनों अपने बयानों से पशुपति पारस ने साफ कर दिया है कि वह समझौता के लिए तैयार नहीं है. हाजीपुर सीट को किसी भी हाल में नहीं छोड़ना चाहते हैं. ऐसे में सवाल है कि अगर पशुपति पारस ने जिद में आकर एनडीए के रास्ता छोड़ दिया तो क्या महागठबंधन के साथ जाएंगे या एकला चलो की राह पर चलेंगे?


एनडीए में पशुपति पारस को चाहिए तीन सीटें


पशुपति पारस की पार्टी की एक बड़ी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अभी तक हम लोग एनडीए में हैं और हर हाल में प्रयास में है कि हमें एनडीए की ओर से हाजीपुर लोकसभा सीट मिले. हमें तीन सीटें दी जाएं. उन्होंने यह भी बताया कि महागठबंधन से भी बात हो रही है, लेकिन वहां भी रास्ता साफ नहीं दिख रहा है.


महागठबंधन भी पशुपति पारस के लिए कर रहा इंतजार


सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार महागठबंधन पशुपति पारस को अपने खेमे में लाने के लिए बेचैन है. यह भी माना जा रहा है कि उन्हें हाजीपुर सीट भी दे दी जाएगी, लेकिन उनके साथ दो सांसद नवादा के चंदन सिंह और समस्तीपुर लोकसभा से प्रिंस राज पर समझौता नहीं हो पा रहा है. महागठबंधन की ओर से प्रिंस राज पर दाव लगाया भी जा सकता है, लेकिन नवादा पर संशय है.


समझिए अब पूरा खेल


दरअसल, आरजेडी नवादा सीट को अपने पास रखना चाहती है. इसकी बड़ी वजह है यह है कि नवादा लोकसभा में छह विधानसभा सीटें हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में तीन सीट गोविंदपुर, नवादा और रजौली पर आरजेडी ने कब्जा जमाया था. एक हिसुआ विधानसभा पर कांग्रेस पार्टी जीत चुकी है. एक सीट बीजेपी और एक सीट जेडीयू को मिली थी.


2019 के चुनाव में चंदन सिंह ने आरजेडी प्रत्याशी विभा देवी को एक लाख 48 हजार वोटों से हराया था. आरजेडी का मानना है कि इस बार वह नवादा सीट को अपने कब्जे में कर लेगी. ऐसे में पशुपति पारस के लिए असमंजस की स्थिति बनी हुई है क्योंकि एलजेपी के पुराने सहयोगी सूरजभान सिंह रहे हैं. उनके भाई चंदन सिंह नवादा से सांसद हैं. पशुपति पारस सूरजभान सिंह को नाराज नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में महागठबंधन अगर तीन सीट देने पर तैयार नहीं होती है तो पारस की पार्टी के नेताओं का दावा है कि वह अकेले चुनाव मैदान में आ सकते हैं. अब सवाल यह उठता है कि अगर पशुपति पारस ने एकला चलो की राह पर चलने का निर्णय लिया तो उनके साथ के चंदन सिंह कितना सहयोग करेंगे?


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