मुंगेर: धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सीता ने सर्वप्रथम पहली छठ पूजा बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर की थीं, जिसके बाद महापर्व  छठ की शुरुआत हुई. छठ को बिहार का महापर्व माना जाता है. यह पर्व बिहार के साथ देश के अन्य राज्यों में भी बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. बिहार के मुंगेर में छठ पर्व का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यता के अनुसार माता सीता ने सर्वप्रथम पहली छठ पूजा बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर सम्पन्न की थी, जब राम के साथ वनवास के लिए गई थी. इसके बाद से लोक आस्था का महापर्व की शुरुआत हुई. प्रमाण स्वरूप आज भी माता सीता के चरण चिन्ह मौजूद है.


जिस स्थान पर माता सीता ने छठ पूजा की थी. मुंगेर के बबुआ गंगा घाट के पश्चिमी तट पर आज भी माता सीता की चरण चिन्ह मौजूद है. यह एक विशाल पत्थर पर अंकित है. पत्थर पर दोनों के चरणों का निशाना है. आज वहां एक विशाल मंदिर बना दिया गया है.


वाल्मीकि और आनंद रामायण में मिलता है प्रसंग


वाल्मीकि और आनंद रामायण के अनुसार ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां ने छह दिन तक रहकर छठ पूजा की थीं. भगवान राम जब 14  वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लोटे थे तो रावण वध से पाप मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया. इसके लिए मुद्गल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुद्गल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया, जिसके बाद मुद्गल ऋषि ने माता सीता को सूर्य की उपासना करने की सलाह दी थी. 


मुद्गल ऋषि ने दिया था आदेश


मुद्गल ऋषि के कहने पर माता सीता ने व्रत रखी. मुद्गल ऋषि के आदेश पर भगवान राम और माता सीता पहली बार मुंगेर आई थीं. यहां पर ऋषि के आदेश पर माता सीता ने कार्तिक की षष्ठी तिथि पर भगवान सूर्य देव की उपासना मुंगेर के बबुआ गंगा घाट के पश्चमी तट पर छठ व्रत किया था. जिस जगह पर माता सीता ने व्रत किया वहां पर माता सीता का एक विशाल चरण चिन्ह आज भी मौजूद है. इसके अलावे शिलापट्ट पर सूप, डाला और लोटा के निशान हैं. मंदिर का गर्भ गृह साल में छह महीने तक गंगा के गर्भ में समाया रहता है. जलस्तर घटने पर छह महीने ऊपर रहता है. यह सीताचरण मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है. वहीं, सीता मां के पद चिन्ह का दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते रहते हैं.


सूप, नारियल, कलश आदि की आकृति पत्थर पर है मौजूद


वहीं, पूजा कर रही महिलाओं और ग्रामीणों ने बताया कि यहां माता सीता के पद चिन्ह सहित सूप, नारियल, कलश आदि की आकृति यहां के पत्थर पर मौजूद है. यहां माता सीता ने पहली बार छठ व्रत किया था और यहां के बाद ही इस महापर्व हर जगह मनाया जाने लगा. ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्र होने के कारण इस मंदिर के अंदर बने चिन्ह छह महीने तक पानी में डूबा रहता है. जबकि पानी घटने के बाद इसे हमलोग साफ सफाई करते हैं जिसके बाद उस चिन्ह का दर्शन हो पाता है. ग्रामीणों ने बताया कि इतनी बड़ी धरोहर होने के बावजूद इस मंदिर से संबंधित कोई विकास का कार्य नहीं हो रहा है, जबकि सरकार और जिला प्रशासन को चाहिए कि इसे पर्यटन स्थल के रूप में घोषित करे.


सरकार इस सीता चरण मंदिर को अनदेखी कर रही है- ग्रामीण


ग्रामीणों ने यह भी कहा कि लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा की शुरुआत मुंगेर से माता सीता ने शुरू की थीं जो कि वनवास के वक्त श्री राम जे साथ अयोध्या लौटी थीं तभी छठ पूजा कर इस पर्व की शुरुआत हुई थी. आज यह पर्व महापर्व के रूप से विकसित है, लेकिन सरकार इस सीता चरण मंदिर को अनदेखी कर रही है इसे पर्यटक स्थल में तब्दील नहीं कर रही है. यह मंदिर आज गंगा के बीचों बीच में स्थित है. यहां आना थोड़ा कठिन है, लेकिन हमलोग यहां आते हैं छठ पर्व जब शुरू होती है तब यहां आकर माता सीता के चरण की पूजा अर्चना करके महापर्व छठ की शुरुआत करते हैं.


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