पटना: क्या बिहार एनडीए का हिस्सा हुए भी पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अलग-थलग पड़ गए हैं? क्या मांझी को साइड लाइन कर दिया गया है? ये सवाल इसलिए उठ रहा है, क्योंकि मांझी की मांगों को इनदिनों बिहार एनडीए में तरजीह नहीं दिया जा रही है. यहां तक की जेडीयू जो हमेशा मांझी के साथ दिखती थी, वो भी उनकी मांगों पर उनके साथ नहीं है.


एनडीए में कॉर्डिनेशन कमिटी की मांग


दरसअल, बुधवार को मांझी की पार्टी ने बीजेपी के नेताओं पर बिहार सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाते हुए एनडीए में कॉर्डिनेशन कमिटी के गठन की मांग की थी. इस मांग के बाद एक ओर जहां बीजेपी ने कड़े शब्दों में मांझी के खिलाफ प्रतिक्रिया दी थी. वहीं, जेडीयू ने भी उनकी मांग को बेवजह बताया है. जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और एमएलसी उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि अभी इसका कोई औचित्य नहीं है. हर बात को हमेशा उठाने का कोई मतलब नहीं है. 


गठबंधन धर्म का पालन हो


बिहार में खास वर्गों को लेकर हो रही सियासत पर कुशवाहा ने कहा, " हम सभी से अपेक्षा रखते हैं कि गठबंधन धर्म का पालन हो. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सहित अपने दल लोगों से भी अपेक्षा है कि किसी भी बात को वे इंटरनल फोरम पर उठाएं. सरकार अकेले जेडीयू और बीजेपी की नहीं है. सरकार में दो अन्य दल भी हैं. किसी भी कमी को दूर करने की जिम्मेदारी सबों की है. 


नीति आयोग की रिपोर्ट और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग के संबंध में उन्होंने कहा कि विशेष राज्य का दर्जा कोई नई मांग नही हैं, यह पुरानी मांग है. जब तक यह मांग पूरी नहीं होती, उठती ही रहेगी. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए, यह बिहार का हक है. आज़ादी के पहले से ही बिहार के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. मदरसा ब्लास्ट के संबंध में कुशवाहा ने कहा कि उन्हें घटना की जानकारी नहीं है. लेकिन मदरसों को बंद नहीं होना चाहिए. मदरसों में अगर कहीं कुछ कमी है, तो उसे दूर करना चाहिए.


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