Patna News: बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का मुस्लिम संगठनों ने बीते 23 मार्च को वफ्फ संशोधन कानून का समर्थन करने को लेकर बहिष्कार गया था, लेकिन उसके बाद भी मुस्लिम समाज के कई नेता और आम लोग इफ्तार पार्टी में शामिल हुए थे. उस इफ्तार पार्टी की अनेक तस्वीरें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर शेयर की गई थीं, लेकिन उन तस्वीरों में से कुछ चुनिंदा फोटो अपने फेसबुक अकाउंट पर अपनी राय के साथ शेयर करना पूर्वी चंपारण जिले में स्थित ढाका के स्वतंत्र पत्रकार को भारी पड़ गया. इसे लेकर मामला दर्ज हो गया है.
फेसबुक पोस्ट पर हुआ था विरोध
पूरा मामला मोतिहारी जिले के ढाका थाना क्षेत्र का है, जहां से सीएम आवास के इफ्तार पार्टी में काफी संख्या में लोग आए थे. एमएलसी खालिद अनवर भी ढाका के ही रहने वाले हैं और फेसबुक अकाउंट पर वह फोटो डाले थे, लेकिन ढाका के ही रहने वाले जामा मस्जिद के इमाम नजरुल मुबीन के बेटे और स्थानीय यूट्यूबर फजलुल मोबीन ने अपने फेसबुक पोस्ट से एक टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने वक्फ बिल का जिक्र करते हुए कुछ लोगों की तस्वीरें भी साझा की थीं.
वह तस्वीर एमएलसी डॉ खालिद अनवर के पोस्ट से डाउनलोड की गई थी. उसमें ढाका के किसान प्रकोष्ठ के प्रखंड अध्यक्ष मो. असगर सहित कई लोगों की तस्वीर थी. फजलुल मोबीन ने अपने फेसबुक अकाउंट पर तीन तस्वीर डालकर टिप्पणी करते हुए लिखा था कि " मुझे बताने में शर्म आ रही है कि मैं ढाका से हूं." इन लोगों के लिए इमारत-ए-शरिया, जमीयत उलेमा ए हिंद, जमीयत अहले हदीस और मुस्लिम पर्सनल लॉ से ऊपर नीतीश कुमार हैं. वक्फ हमारा संवैधानिक अधिकार है और शरीयत का मामला भी है. कम से कम इसका तो ख्याल रख लेते?
अब इसको लेकर मामला तूल पकड़ने लगा और जेडीयू के किसान प्रकोष्ठ के ढाका प्रखंड अध्यक्ष मो. असगर ने 26 मार्च को ढाका थाने में आवेदन देते हुए लिखा कि "मेरी इफ्तार पार्टी की फोटो लगाकर अपशब्द एवं अमर्यादित भाषा का प्रयोग कर मेरी छवि एवं प्रतिष्ठा को धूमिल करने की नीयत से पोस्ट किया जा रहा है. उनके द्वारा लगातार पोस्ट कर मुझे मानसिक और सामाजिक स्तर पर प्रताड़ित करने का कार्य किया जा रहा है." इसके बाद पुलिस एक्शन में आई और मामला दर्ज कर लिया. पुलिस ने फजलुल मोबीन के फेसबुक पोस्ट को डिलीट भी करवा दिया.
फजलुल मोबिन ने एबीपी न्यूज से बातचीत में कहा कि क्या सरकार के खिलाफ बोलना अब अपराध बन चुका है? यह घटना बिहार में लोकतंत्र की स्थिति पर भी सवाल उठाती है. हम लोग इमारत-ए-शरिया और अन्य मुस्लिम संगठन के विरोध का समर्थन कर रहे हैं और वफ्फ संशोधन कानून के खिलाफ हैं. कुछ लोगों का मानना है कि अगर सरकार के खिलाफ आवाज उठाना गुनाह बन जाता है, तो यह पूरी प्रणाली के लिए खतरनाक हो सकता है. इस घटनाक्रम ने राज्य की राजनीति और समाज में विचारों की स्वतंत्रता के अधिकार पर भी प्रश्न खड़े किए हैं.
मोहम्मद असगर ने दर्ज कराई एफआईआर
दरअसल, एफआईआ दर्रज होने के बाद इस मामले ने तब तूल पकड़ लिया जब फजलुल मोबीन ने दावा किया कि ये काम एमएलसी खालिद अनवर का कराया धराया है. मोबीन कहते हैं, "मैं खालिद अनवर को अच्छी तरह जानता हूं. वह भी मुझे जानते हैं. यह पूरी साजिश उनकी है और मोहम्मद असगर उनके खास आदमी हैं और उन्होंने मोहम्मद असगर के जरिए एफआईआर दर्ज करवाई है.''
वहीं इस मामले पर एमएलसी डॉ खालिद अनवर ने कहा कि मुझे इस मामले की पूरी जानकारी नहीं है. मोहम्मद असगर को मैं अच्छी तरह जानता हूं. वह हमारे पार्टी के नेता हैं, लेकिन यह लोकल मामला है. क्या कुछ विवाद हुआ है यह लोकल स्तर पर किया गया है. मुझे बहुत हल्की जानकारी मिली है, लेकिन इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है.
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