Bihar Cabinet Expansion News: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले कैबिनेट विस्तार हो गया है. बुधवार (26 फरवरी) को बीजेपी के सातों विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली. इनमें संजय सरावगी, डॉ. सुनील कुमार, जीवेश कुमार, राजू सिंह, मोती लाल प्रसाद, विजय कुमार मंडल और कृष्ण कुमार मंटू शामिल हैं. सात मंत्री बनने से अब नीतीश कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या 36 हो गई है. कैबिनेट में अब 21 बीजेपी के मंत्री हैं जबकि नीतीश समेत जेडीयू से 13 मंत्री हैं. इसके अलावा जीतन राम मांझी की पार्टी 'हम' के एक मंत्री और निर्दलीय सुमित सिंह भी मंत्री हैं. मंत्रिमंडल विस्तार के बाद बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में दिख रही है. कैबिनेट विस्तार को विपक्षी दल चुनाव से जोड़कर हमला कर रहे हैं. अब समझिए पूरा समीकरण क्या कहता है.

बीजेपी के जिन सात विधायकों को मंत्री बनाया गया है उनमें से छह सिर्फ उत्तर बिहार के हैं. एक बिहार शरीफ के विधायक डॉ. सुनील कुमार हैं जो दक्षिण बिहार से आते हैं. बीजेपी की चुनावी रणनीति को समझा जाए तो उत्तर बिहार में बीजेपी अपना दबदबा कायम रखना चाहती है. इसकी मुख्य वजह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर बिहार के सीमांचल की कुछ सीटों को छोड़ दिया जाए तो करीब-करीब सभी सीटों पर एनडीए की जीत हुई थी लेकिन दक्षिण बिहार में नुकसान उठाना पड़ा था.

वोट बैंक को बरकरार रखने के लिए किया गया प्लान

अररिया के सिकटी विधानसभा क्षेत्र के विधायक विजय मंडल को मंत्री बनाकर बीजेपी ने सीमांचल में एक बड़ा संदेश दिया है. दरभंगा और मधुबनी में मुस्लिम की आबादी अधिक है ऐसे में दरभंगा जिले से दो विधायक संजय सरावगी और जीवेश कुमार को मंत्री बनाया गया है. देखा जाय तो जातीय समीकरण के हिसाब से भी बीजेपी ने चुनाव को देखते हुए सारी रणनीति बनाई है. जिन सात विधायकों को मंत्री बनाया गया है उनमें से दो जीवेश कुमार और राजू सिंह सवर्ण जाति से आते हैं. बीजेपी सवर्ण जाति को अपना कोर वोटर मानती है इसलिए अपने वोट बैंक को बरकरार रखने के लिए प्लान किया है.

ऐसा माना जाता है कि वैश्य समाज भी बीजेपी का कोर वोटर है. इस हिसाब से वैश्य समाज से आने वाले संजय सरावगी और मोती लाल प्रसाद को मंत्री बनाया गया है. उत्तर बिहार के सीतामढ़ी, शिवहर और मोतिहारी के अलावा कई जिले हैं जो वैश्य बहुल क्षेत्र हैं. वैश्य जाति अतिपिछड़ा वर्ग है. बिहार में हुए जातीय सर्वे के अनुसार 36% आबादी अति पिछड़ा की है तो पांच चेहरे अतिपिछड़ा और पिछड़ा से दिए गए हैं.

ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी ने मंत्रिमंडल विस्तार में जो रणनीति बनाई है वह 2024 के लोकसभा चुनाव से जुड़ा है. 2024 में हार-जीत के मंथन के बाद यह निर्णय लिया गया है. इसकी बड़ी वजह है कि 2024 में हुए लोकसभा के चुनाव में शाहाबाद के इलाके में लगभग सभी सीटों पर एनडीए को हार का सामना करना पड़ा था. कारण था कुशवाहा समाज की नाराजगी, इसलिए सीएम नीतीश कुमार की जाति कुर्मी समाज को इग्नोर करके चलना खतरनाक हो सकता है.

इस हिसाब से कुर्मी जाति से आने वाले कृष्ण कुमार मंटू जबकि कुशवाहा समाज से आने वाले डॉ. सुनील कुमार को मंत्री बनाकर बड़ा संदेश दिया गया है. दक्षिण बिहार में अगर सवर्ण और कुशवाहा, कुर्मी, कोइरी की नाराजगी खत्म हो जाती है तो अधिसंख्य सीटों पर एनडीए की जीत हो सकती है. भले बीजेपी के सभी सात विधायकों को मंत्री बनाया गया है लेकिन कहीं न कहीं ऐसा लग रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इन नामों से सहमत हैं.

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