बक्सर जिले से इंसानियत और कौमी एकता को मजबूत करने वाली एक बेहद भावुक और प्रेरणादायक कहानी सामने आई है. यहां रामपुर पंचायत के डेवी डेहरी गांव में एक पिता ने अपने इकलौते बेटे की याद में ऐसा फैसला लिया, जिसकी चर्चा पूरे इलाके में हो रही है. डेवी डेहरी गांव के रहने वाले जनार्दन सिंह ने अपने पुत्र शिवम सिंह की स्मृति में एक बीघा जमीन गांव के कब्रिस्तान के नाम दान कर दी.

Continues below advertisement

शिवम की 18 नवंबर 2025 को देहरादून में एक सड़क हादसे में दर्दनाक मौत हो गई थी. जनार्दन सिंह देहरादून में आयुर्वेद दवाओं के कारोबार से जुड़े हैं. उनका बेटा शिवम वहीं से B.Tech और एमबीए की पढ़ाई पूरी कर चुका था और तीन फैक्ट्रियों का संचालन भी कर रहा था.

परिवार में चल रही थी शिवम की शादी की तैयारियां

परिवार में शिवम की शादी की तैयारी भी चल रही थी, लेकिन अचानक हुए इस हादसे ने पूरे परिवार को गहरे सदमे में डाल दिया. शिवम के चाचा बृजराज सिंह ने बताया कि हादसे वाले दिन शिवम रोज की तरह मोटरसाइकिल से ऑफिस जा रहा था, तभी एक तेज रफ्तार कार ने उसे जोरदार टक्कर मार दी. मौके पर ही उसकी मौत हो गई. 

Continues below advertisement

ब्रह्मभोज के दिन लिया गया जमीन दान का फैसला

शिवम का अंतिम संस्कार बनारस के मणिकर्णिका घाट पर पूरे हिंदू रीति-रिवाज से किया गया. गांव लौटने के बाद श्रद्धकर्म के दौरान ब्रह्मभोज के दिन हिंदू समाज के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी आमंत्रित किया गया. आपसी विचार-विमर्श के बाद हिंदू और मुस्लिम समाज के सदस्यों को शामिल कर एक कमेटी बनाई गई और फिर शिवम की याद में एक बीघा जमीन कब्रिस्तान के नाम दान करने का फैसला लिया गया. 

मृतक के चाचा ने क्या बताया?

बृजराज सिंह ने बताया कि गांव में करीब 50 मुस्लिम परिवार रहते हैं, लेकिन उनके पास कब्रिस्तान की कोई जमीन नहीं थी. पहले जिस जगह पर कब्रिस्तान था, वहां अब स्कूल बन चुका है. मजबूरी में शव दफनाने के लिए मुस्लिम परिवारों को करीब 5 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. अब इस जमीन के मिलने से उनकी यह बड़ी समस्या खत्म हो गई है.

शिवम की दादी शारदा देवी ने भावुक होते हुए कहा कि उनका होनहार पोता चला गया, लेकिन उनकी इच्छा थी कि गांव में उसकी कोई निशानी रहे. इसी भावना से यह जमीन दान की गई, ताकि आने वाली पीढ़ियां शिवम को याद रखें. गांव के अलाउद्दीन ने कहा कि यह फैसला सिर्फ जमीन का दान नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने वाली एक बड़ी पहल है. जो डेवी डेहरी गांव को कौमी एकता की मिसाल बनाती है.