बिहार की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के लिए आने वाला समय चुनौतीपूर्ण नजर आ रहा है. विधानसभा चुनाव में अपेक्षा से कम सीटें मिलने के बाद अब राज्यसभा चुनाव ने भी पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

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मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को देखें तो इस बार आरजेडी को राज्यसभा में सिर्फ एक ही सीट मिलने की संभावना जताई जा रही है. ऐसे में नए साल की शुरुआत से पहले ही तेजस्वी यादव को एक और सियासी झटका लग सकता है.

राज्यसभा चुनाव में घटेगा आरजेडी का संख्याबल

विधानसभा में घटे संख्याबल का सीधा असर अब राज्यसभा चुनाव पर दिख रहा है. सूत्रों के अनुसार, इस बार आरजेडी के खाते में सिर्फ एक राज्यसभा सीट ही आती दिख रही है. इससे पहले पार्टी की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत मानी जाती थी. लेकिन मौजूदा हालात में उसका प्रभाव कमजोर पड़ता नजर आ रहा है.

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इन पांच सीटों पर होगा राज्यसभा का चुनाव

बिहार में राज्यसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की सियासी मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं. बता दें कि पांच सांसदों का कार्यकाल 2026 को खत्म हो रहा है. इनमें जेडीयू के हरिवंश नारायण सिंह और रामनाथ ठाकुर, आरजेडी के प्रेमचंद गुप्ता और अमरेंद्र धारी सिंह है. इसके अलावा आरएलएम के उपेंद्र कुशवाहा शामिल हैं. यानी इस बार राजद की दो सीटें दांव पर हैं. लेकिन बदले राजनीतिक हालात में तस्वीर पूरी तरह बदलती दिख रही है.

दो सीट से सीधे शून्य पर न सिमट जाए आरजेडी!

विधानसभा चुनाव के बाद बदले समीकरणों के कारण इस बार राज्यसभा की सिर्फ एक सीट राजद के खाते में आना तय माना जा रहा है. साफ शब्दों में कहें तो राजद की संख्या एक कम होगी. सियासी गलियारों में यह चर्चा भी तेज है कि अगर हालात और बिगड़े है तो पार्टी दो सीटों से सीधे शून्य पर भी पहुंच सकती है.

अब बात करते हैं उस फॉर्मूले की, जो सांसद बनने के लिए निर्णायक है. राज्यसभा चुनाव में कोटा तय करने का एक तय फॉर्मूला होता है. अगर कुल वैध वोट 243 हैं और भरी जाने वाली सीटें 5 हैं तो कोटा इस तरह निकलेगा-

कोटा - (कुल वैध वोट भाग करने पर (सीटों की संख्या + 1)) + 1यानी 243 भाग करने पर (5+1) = 40.5, इसमें 1 जोड़ने पर 41.5 आता है. चूंकि फ्रैक्शन को नजरअंदाज किया जाता है, इसलिए अंतिम कोटा 42 वोट होता है.

फॉर्मूला के हिसाब से साफ है कि राज्यसभा सांसद बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को कम से कम 42 विधायकों का समर्थन चाहिए. लेकिन मौजूदा हालात में पूरे महागठबंधन के पास भी 42 विधायक जुटाना आसान नहीं दिख रहा. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि राजद को इस सीट से भी हाथ धोना पड़ सकता है.

2020 के बाद बदली सियासी तस्वीर

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन सत्ता से दूर रह गई. उस समय पार्टी ने मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने का दावा किया था. मगर अब हालात पहले जैसे नहीं दिख रहे. मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में पार्टी की पकड़ कमजोर होती नजर आ रही है.

2005 में जब सत्ता से बाहर हुई आरजेडी

अगर इतिहास के पन्ने पलटें तो 2005 का चुनाव आरजेडी के लिए बड़ा झटका साबित हुआ था. उस समय नीतीश कुमार ने जोरदार जीत के साथ सत्ता संभाली थी. जबकि राबड़ी देवी के नेतृत्व में आरजेडी सिर्फ 55 सीटों पर सिमट गई थी. राज्य में सरकार के खिलाफ भारी नाराजगी उस हार की बड़ी वजह मानी गई थी.

इसके बाद 2010 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी अपने अब तक के सबसे खराब दौर से गुजरी. पार्टी को सिर्फ 22 सीटें मिली थीं जिसे उसका ऐतिहासिक न्यूनतम प्रदर्शन माना जाता है.

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