अभी तक तो दुनिया को यही पता था कि पुलिस का इकबाल बुलंद होता है तो अपराधियों के हौसले पस्त हो जाते हैं. लेकिन जब पुलिस का आला अधिकारी ही इस बात को कबूल कर ले कि अपराध रोकने में और खास तौर से हत्याओं को रोकने में पुलिस का इकबाल नहीं बल्कि बारिश की भूमिका ज्यादा होती है तो फिर इस बयान को शर्मनाक कहा जाए या खौफनाक ये तय नहीं हो पा रहा है.

ये बयान उस अधिकारी का है, जिसके जिम्मे पूरा बिहार है. पूरी पुलिस फोर्स है...लेकिन वो कह रहे हैं कि अप्रैल, मई, जून में हत्याएं होती ही हैं. और जब बारिश होती है तो किसान काम पर लग जाते हैं और हत्याएं रुक जाती हैं. प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुलिस की कार्यशैली का बखान करते वक्त जब एडीजी साहब ये बयान दे रहे थे, तो जुलाई महीने को भी बीते 16 दिन हो गए थे और इस जुलाई में जब बारिश लगातार हो रही है, पूरा देश पानी-पानी है, किसान अपने खेतों में धान बो रहे हैं, तब भी उनके प्रेस कॉन्फ्रेंस वाली जगह यानी कि राजधानी पटना में हर रोज हत्याएं हो रही हैं.

गोलियां मारते हैं और 25 सेकेंड में फरार हो जाते हैं

अगर एडीजी साहब की ही बात मान ली जाए और अप्रैल, मई, जून महीने के अपराधों की गिनती थोड़ी देर के लिए भुला भी दी जाए तो सिर्फ जुलाई-जुलाई में ही बिहार में कम से कम 30 हत्याएं हो चुकी हैं. और वो भी तब जब बारिश हो रही है. यकीन न तो हो तो पटना के पारस अस्पताल वाला वो वीडियो ही देख लीजिए, जिसमें पांच बेखौफ अपराधी अस्पताल की दूसरी मंजिल पर हथियारों के साथ जाते हैं, गोलियां मारते हैं और 25 सेकेंड में फरार हो जाते हैं.

पुलिस अपराधियों को रोक नहीं पा रही है, कभी सरेआम डकैती हो रही है तो कभी लूट, शराब के तस्कर हर दिन हजारों पेटी शराब बिहार पहुंचा रहे हैं और लाखों कमा रहे हैं.

लाइन में लगकर यूरिया और डीएपी का जुगाड़ करते हैं किसान

जब ठीकरा फोड़ने की बारी आती है तो ठीकरा फूटता है उन बेचारे किसानों पर, जो किसी तरह से लाइन में लगकर यूरिया और डीएपी का जुगाड़ करते हैं ताकि धान रोप सकें, वो किसी तरह से किसी से कर्ज लेकर, उधार लेकर बीज और दवाइयां खरीदते हैं ताकि उनका घर चल सके...वो किसी तरह से पैसे जुटाकर डीजल खरीद पाते हैं ताकि ट्रैक्टर चल सकें और बारिश न होने पर डीजल इंजन से पानी चला वो धान पैदा कर सकें.

वो क्या ही करेंगे...जिनके पास खुद के परिवार के लिए वक्त नहीं होता, वो वक्त निकालकर मर्डर कर रहे हैं क्या आप ये कहना चाहते हैं...क्योंकि आपका किसानों पर दिया ये बयान तो यही कहता है.

एडीजी के बारे में कहा जाता है कि बड़े-बड़े बाहुबली आपसे खौफ खाते हैं. आप 1994 से ही आईपीएस हैं. बिहार से लेकर केंद्र की प्रतिनियुक्ति तक में रहे हैं. रहने वाले भी आप नालंदा के ही हैं, जहां बहुतेरे किसान हैं. फिर भी आप बिहार में अपराध के लिए किसानों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं तो फिर क्या ही कहा जाए. 

एडीजी के बयान को उप-मुख्यमंत्री ने अनुचित बताया है. लेकिन क्या उप-मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री से कहकर इस बयान के लिए कोई ऐक्शन भी लेंगे या फिर ये मान लिया जाए कि बिहार में जब पानी की बारिश नहीं हो रही होगी तो गोलियों की बारिश तो होगी ही होगी.