नई दिल्ली: बिहार में सात लाख से अधिक मतदाताओं ने विधानसभा चुनावों में 'इनमें से कोई नहीं' या नोटा का विकल्प चुना. यह जानकारी चुनाव आयोग ने दी. बिहार में बुधवार को नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए फिर से सत्ता में लौट आई है. सत्तारूढ़ गठबंधन ने 243 सदस्यीय विधानसभा में 125 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि विपक्षी महागठबंधन को 110 सीटें हासिल हुईं, जिससे कुमार लगातार चौथी बार बिहार की सत्ता संभालेंगे.


चुनाव आयोग की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, सात लाख छह हजार 252 लोगों ने या 1.7 फीसदी मतदाताओं ने नोटा के विकल्प को चुना, जिसके तहत उन्होंने किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं किया. तीन चरणों में हुए विधानसभा चुनावों में चार करोड़ से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. सात करोड़ 30 लाख से अधिक मतदाताओं में से 57.07 फीसदी ने मतदान किया था.


'नोटा' का विकल्प 2013 में शुरू किया गया था


इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में 'नोटा' का विकल्प 2013 में शुरू किया गया था, जिसका चुनाव चिह्न बैलेट पेपर है जिस पर काले रंग का क्रॉस लगा होता है. सुप्रीम कोर्ट के सितम्बर 2013 के एक आदेश के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम में नोटा का बटन जोड़ा, जिसे वोटिंग पैनल पर सबसे अंतिम विकल्प रखा जाता है.


उच्चतम न्यायालय के आदेश से पहले जो लोग किसी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते थे, उनके पास एक फॉर्म भरने का विकल्प होता था जिसे 'फॉर्म 49-O' कहा जाता था. हालांकि, इस फॉर्म को भरने से मतदान की गोपनीयता के कानून का उल्लंघन होता था. बहरहाल, उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को यह आदेश देने से मना कर दिया कि अगर अधिकतर मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना तो फिर से चुनाव कराए जाएंगे. बिहार में कई सीटों पर उम्मीदवारों के जीत के अंतर से ज्यादा वोट नोटा को पड़े.


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