बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे करीब-करीब आ गए हैं. जाने माने रणनीतिकार और जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर अपने पहले चुनाव में पूरी तरह नाकाम रहे और उन्हें एक भी सीट हासिल नहीं हुई. जन सुराज के जिस उम्मीदवार केसी सिन्हा के जीतने के लगे सबसे ज्यादा कयास लगाए जा रहे थे वो बुरी तरह से चुनाव में मात खा गए. कुम्‍हरार से जन सुराज पार्टी ने मशहूर गणितज्ञ केसी सिन्हा को टिकट दिया था. लेकिन इस सीट पर बीजेपी के संजय कुमार ने केसी सिन्हा को पटखनी दे दी.

Continues below advertisement

इस सीट से बीजेपी के संजय कुमार ने केसी सिन्हा को 85 हजार 468 वोटों के अंतर से हरा दिया. संजय कुमार को कुल 1 लाख 485 वोट हासिल हुए, जबकि केसी सिन्हा को महज 15 हजार 17 वोट ही मिले और वो तीसरे नंबर पर रहे. कुम्‍हरार सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी इन्द्रदीप कुमार को कुल 52 हजार 961 वोट प्राप्त हुए और वो दूसरे नंबर पर रहे. संजय कुमार को 47 हजार 524 वोटों से जीत मिली है.

प्रशांत किशोर ‘अर्श’ नहीं, ‘फर्श’ पर रहे!

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने कई बार यह कहा था कि उनकी जन सुराज पार्टी ‘अर्श’ पर रहेगी या फर्श पर रहेगी. उनका यह बयान उनके लिए कड़वी हकीकत बन गया. बिहार विधानसभा चुनाव में किशोर ने दो बड़े दावे किए थे. उनका दावा था कि जन सुराज “अर्श पर या फ़र्श पर’’ रहेगी. वहीं, उन्होंने जद (यू) को लेकर भविष्यवाणी की थी कि नीतीश कुमार की पार्टी 25 सीटें से ज्यादा नहीं जीतेगी. किशोर की अपनी पार्टी के लिए राह बेहद कठिन साबित हुई. 

Continues below advertisement

जन सुराज के अधिकतर प्रत्याशियों की जमानत जब्त

अधिकतर सीटों पर जन सुराज प्रत्याशियों की ज़मानत ज़ब्त होती नजर आ रही है. बिहार में 47 वर्षीय किशोर ने करीब एक साल पहले बिहार भर में महीनों तक चली पदयात्रा के बाद अपनी पार्टी की शुरुआत बड़े जोर-शोर से की थी. हालांकि, किशोर को पिछले साल लोकसभा चुनाव में भाजपा के 300 पार जाने का गलत अनुमान लगाने के लिए आलोचना झेलनी पड़ी थी, लेकिन वह लगातार यह कहते रहे हैं कि भारत जैसे देश में, जहां बड़ी आबादी आजीविका के लिए संघर्ष करती है, वहां विपक्ष के लिए हमेशा स्थान रहेगा.

प्रशांत किशोर की रणनीतिक क्षमता से किन्हें फायदा?

चुनाव प्रबंधन एजेंसी ‘आई-पैक’ संस्थापक का यह विश्लेषण कि 'विपक्ष नहीं, विपक्ष की पार्टियां कमजोर हैं', भारतीय राजनीति में उनकी समझ को दर्शाता है. किशोर की रणनीतिक क्षमता से नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, जगन मोहन रेड्डी, उद्धव ठाकरे और एम.के. स्टालिन जैसे नेता लाभान्वित हुए हैं. हालांकि, उनके सभी अभियान सफल नहीं रहे. बिहार में महागठबंधन की करारी हार के बाद किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी के लिए अब भी राजनीति में संभावनाओं का नया मैदान खुला है.

नीतीश कुमार ने किया था सलाहकार नियुक्त

जन सुराज पार्टी किशोर का पहला राजनीतिक मंच नहीं है. चुनावी रणनीति में उनकी दक्षता से प्रभावित होकर नीतीश कुमार ने 2015 में सत्ता में लौटने के बाद उन्हें कैबिनेट मंत्री के बराबर दर्जे के साथ सलाहकार नियुक्त किया था. तीन साल बाद वह जद (यू) में शामिल हो गए थे. वह पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बने, जिससे यह अटकलें तेज हो गई थीं कि नीतीश कुमार उन्हें अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखते हैं.

हालांकि, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर जद (यू) की अस्पष्ट स्थिति के खिलाफ मुखर होने पर एक साल के भीतर ही उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया था. निष्कासन के बाद किशोर ने 'बात बिहार की' नाम से एक अभियान शुरू किया, जो शुरुआत में ही ठप पड़ गया. ममता बनर्जी के 2021 के चुनाव अभियान को सफलतापूर्वक संभालने के बाद उन्होंने कांग्रेस को 'पुनर्जीवित' करने की योजना भी पेश की, लेकिन यह प्रयास भी आगे नहीं बढ़ सका.